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कोई भी राष्ट्र हो वहां के हर नागरिक का इतना तो अधिकार होता ही है कि वह जब चाहे जहां चाहे अपनी मातृभूमि की जय-जयकार तो कर ही सकता है, लेकिन देश में कुछ अराजक तत्व तो ऐसे भी है कि उनको ये शब्द बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते। उनको अच्छे लगते हैं तो दूसरे देश की जय-जयकार करना। अब ऐसे गद्दार अगर देश के अंदर रहेंगे, तो देश में दंगा होना स्वाभाविक है। ऐसा ही कुछ हुआ कासगंज (उप्र) में जहां पर 26 जनवरी को विद्यार्थी परिषद के द्वारा निकाली गई तिरंगा यात्रा पर बवाल हो गया और इसमें निर्दोष की जान भी चली गयी, जबकि उनका दोष सिर्फ इतना भर था कि ये भारत माता की जय बोल रहे थे।
यह घटना दुःखद है। आज देश के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हम इतने आजाद नहीं है कि भारत माता की जय बोल सके? बड़े आश्चर्य की बात है कि कुछ लोग राष्ट्र का गान करने के बजाय दूसरे देश का गुणगान करते है और उनको ऐसा करने में सुकून भी मिलता है। उनको हिंदुस्तान जिंदाबाद कहना अच्छा नहीं लगता, ये शब्द उनको कांटे की तरह चुभते है, उनको पाकिस्तान जिंदाबाद कहने पर ही बहुत बड़ी खुशी मिलती है। जिस व्यक्ति को अगर भारत माता की जय,वंदे मातरम की आवाज इतनी बुरी लगती है तो वे क्यों नही उसी देश की शरण में जाते जिसका वे गुणगान करते हैं।
ऐसे अराजक लोग अपना आपा इस कदर खो देते हैं कि वे मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। इन उपद्रवियों से कैसा व्यवहार किया जाय कि वे कभी भी ये हिम्मत न करें कि राष्ट्र के खिलाफ जाकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाएं। अगर उनको पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे ही लगाने हैं तो वे पाकिस्तान की शरण मे क्यों नहीं जाते? ये अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं, जिस देश में रहकर अगर उनको डर लगता है तो वे देश छोड़कर क्यों नहीं जाते चाहिए।
बड़े शर्म की बात है कि ऐसे लोग हिंदुस्तान में रहते हैं, जिसको भारत माता की जय बोलना तो दूर सुनना भी अच्छा नहीं लगता। यह देश ऐसा देश है जिसकी प्रशंसा विदेश के राष्ट्राध्यक्ष भी करते हैं, उस भारत में रहकर लोगों को डर लगता है। मनुष्य का स्तर कितना गिर गया है कि लोग इसी भारत का खाकर खड़े होते हैं फिर जब पैरों में जान आ जाती है, तो यही लोग भारत की जमीन पर खड़े होकर भारत के टुकड़े करने लगते हैं और जब विदेश में यही व्यक्ति पहुँच जाता तो वह बड़े गर्व से कहता कि मैं भारतीय हूँ। अब सोचने वाली बात है लोग किस मुंह से ये कहते हैं कि मैं भारतीय हूँ, लोगों का यही दोहरापन ही समझ से परे है। देश में रहकर देश की निंदा करना, दूसरे देश गुणगान करना यह कहीं से भी नहीं दर्शाता कि हम अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी से निर्वहन कर रहे हैं।
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