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राजनीतिक मर्यादाओं का गिरता स्तर

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जिस प्रकार से भारतीय संस्कृति की पहचान विश्व में एक अहमियत रखती है उसी तहजीब को बनाएं रखना हमारा परम् कर्तब्य है। इसी संस्कृति के कारण यहां के लोगों का भी लोग सम्मान करते है, लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में देखा जाय तो राजनेतायो ने भारतीय संस्कृति का बिल्कुल नाश कर दिया है। इनकी वाणी में वह भारतीय मिठास नहीं रह गया जिसके लिए हिंदुस्तान को जाना जाता है। राजनेतायो के बड़बोलेपन की वजह से राजनीतिक मर्यादाओं का भी पतन होता जा रहा है और ये नहीं है कि ये हमेशा होता हो लेकिन जब चुनावी माहौल रहता है तो ये चरम पर पहुँच जाता है। इस समय इन राजनेतायो के ऊपर सरस्वती माँ अपना प्रभाव हटा देती है जिससे कि ये अपने निम्नतम स्तर पर आ जाते है और वह किसी को कुछ भी बोलने से गुरेज नहीं करते, यहां तक कि पीएम तक को भी नहीं बख्शा जाता और उनको भी अपशब्द कह कर भड़ास निकाल देते है। पिछले तीन सालों से जो भी चुनाव हो रहे है उसमें मर्यादाओं को तार-तार कर दिया जा रहा है अब चाहे वह 2014 का लोक सभा चुनाव हो या फिर 2017 का यूपी का चुनाव या फिर गुजरात का चुनाव। यूपी चुनाव में भी युवराज, राजकुमार, गुजरात के गधे, बाहरी आदि शब्दों का जिक्र बहुत तेजी से हुआ। इस समय गुजरात में भी तीखे बाणों का छूटना जारी है जिसमें विकास हुआ है, विकास पागल हो गया है ,औरंगजेब, बाबर, ख़िलजी , अयोध्या के साथ ही कई तरह से तर्क-वितर्क जारी है।सभी दल एक -दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा वोट अपने हक में किया जा सके, इसी चक्कर में कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर अपने वाणी को इतना नियंत्रण नहीं रख सके कि देश के पीएम को नीच बता दिया, वे एक देश के पीएम की क्या अहमियत होती है उसको याद नहीं कर सके। फ़िलहाल उनको इसके लिए कांग्रेस के तरफ से सजा भी मिल गयी जिनको निलंबित कर दिया गया है, लेकिन इससे कुछ नहीं होता, निलंबित करने से कुछ नहीं होता। ये लोग सुधरने वाले नहीं है। ये कुछ दिन बाद ही अपनी गलती मान लेते है। हर पार्टी के नेता को चाहिए कि अपनी भाषा का प्रयोग करें लेकिन एक दायरे में, दायरे से बाहर जाकर नहीं,क्योंकि इससे राजनीतिक मर्यादाओं का पतन होता है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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