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पूर्वाग्रह में फंसी ईवीएम

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कोई भी देश हो या सरकार सबको बदलाव पसन्द होता है और उस बदलाव में भी अगर राजनीति प्रवेश कर जाय तो उस बदलाव पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है। देश के अंदर कुछ इसी प्रकार का बदलाव चुनाव आयोग भी सोच रहा है जिसमें बैलेट पेपर के जगह ईवीएम बदलते समय में बैलेट पेपर से चुनाव प्रक्रिया को स्थगित करके ईवीएम के द्वारा चुनाव कराने का मकसद ये नहीं था कि इस पर लोग सवाल उठाए और इसके औचित्य पर ही संकट खड़ा हो जाये। इसका मकसद सिर्फ ये था कि इससे समय, श्रम और धन की बचत होगी और सबसे बड़ा फायदा ये है कि कम समय में चुनाव परिणाम जाने जा सकते है, पर आज ईवीएम के गुण देखने के बावजूद विपक्षी पार्टियों के द्वारा बार-बार इस पर अंगुली उठाते रहते है। इतना ही नही चुनाव आयोग की भी किरकिरी होती है और उसको कई बार सफ़ाई भी देनी पड़ी। उसके बावजूद भी लोगों को ईवीएम को लेकर फैला भ्रम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। सबसे ज्यादा दिक्कत अगर किसी को है तो उनमें विशेषकर सपा, कांग्रेस और बसपा है जिनको ईवीएम के परिणाम रास नहीं आते और बार-बार बैलेट पेपर से चुनाव की मांग करते रहे है और इस पार्टी के मुखिया भी ईवीएम की विश्वनीयता पर ही सवाल उठा देते है।ईवीएम से वोटिंग करवाने में सबसे ज्यादा नुकसान इंही पार्टियों को उठाना भी पड़ता है।अब चाहे इन पार्टियों की गिरती गुणवत्ता के कारण हो या फिर इनके मन में घर बना भाजपा के प्रति का पूर्वाग्रह, इसको तो यही बता सकते है लेकिन सबसे बड़ी बात गौर करने वाली ये है कि जो पार्टी जिस भी जगह से जीत दर्ज कर रही है वो उस सीट पर ईवीएम के खराब होने का दावा बिल्कुल भी नहीं करते। आज इन पार्टियों की भाषा पर गौर करे तो ये भी पड़ोसी पाकिस्तान की तरह है जो अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद में अंतर समझाता रहता है जबकि आतंकवाद कैसा भी हो उसको हम अच्छे-बुरे में विभक्त नहीं कर सकते। अगर भारत में आतंकी घटना होती है तो यह अच्छा आतंकवाद है और जब यही पाक में होता है तो वह बुरा घटना होती है ठीक इसी प्रकार से हमारे राजनीतिक दल भी अच्छा ईवीएम और बुरा ईवीएम सिद्ध करने में लगे हुये है आज ईवीएम को एक बार फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया गया है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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