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कोई भी मनुष्य अगर इतना भी सामर्थ्य नहीं है कि वह अपने परिवार का भरण -पोषण कर सके तो उसके पास भिक्षा मांगने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। भिक्षा लोग तभी मांगते है जब उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल खस्ताहाल होती है और उनके पास दो जून की रोटी के भी लाले पड़ जाते है, या फिर हम यू कहे कि जीविकोपार्जन के लिए कोई श्रोत नहीं बचता तो ऐसी स्थिति में उसके लिए भीख मांगना ही एक चारा हो सकता है या फिर हम यू कहे कि जब किसी परिवार में कोई भी समर्थवान नहीं होता तो उस परिवार की मजबूरी बन जाती है भीख मांगना, लेकिन केंद्र सरकार के कथनानुसार अगर कोई भी गरीबी के कारण भीख मांग रहा है तो यह अपराध नहीं है। जबकि देश के अंदर भिक्षा देना और लेना दोनों अपराध घोषित है तो फिर हम कैसे कह सकते है कि जो भिक्षा मांग रहा है वह गरीबी के कारण ही मांग रहा है। देश में ऐसा कोई भी स्केल नहीं बना जिससे कि ये पता लगाया जा सके कि कौन गरीबी से मांग रहा है और कौन शौकिया भिक्षा मांग रहा है। बहुत से लोग है जिनका खानदानी धंधा ही बन गया है भीख मांगना। उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को अंजाम देती आ रही है और वे अपने इसी पुश्तैनी काम से खुश रहते है तो इनको हम क्या कहेंगे। यह भिक्षा एक तरह से न तो गरीबी और न ही मज़बूरी में किया गया कह सकते है। हां, कुछ भिक्षा माफिया है जो बहुत से लड़को का अपहरण करके उनको भिक्षावृत्ति के धंधे में धकेल देते है ये भिक्षा मांगने वाले छोटे बच्चे होते है जो मज़बूरन मांगते है। कोई भी सरकार यह कैसे बता सकती है कि जो आदमी भिक्षा मांग रहा है वह गरीबी के कारण ही भिक्षा मांग रहा है, अगर गरीबी के कारण मांग रहा है तो सरकार इस बात का पता लगाएं कि वह कौन सी परिस्थिति है जिसके कारण वह भिक्षा मांग रहा है उसको दूर करने की कोशिश होनी चाहिए न कि गरीब कह कर अपने जिम्मेदारी से इतिश्री कर ले।ऐसे में भिक्षा मांगने का क्या कारण हो सकता है इसका अनुमान लगाना कठिन है और इसका कोई मापदंड भी नहीं है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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