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क्या ऐसे ही बनेगा डिजिटल इंडिया

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एक वह भी समय था जब लोग एक शहर से दूसरे शहर में जाने के लिए कई दिन से महीनों तक का सफर पैदल ही पूरा कर लेते थे ये लोग उस समय में भी समस्याओं से बहुत ज्यादा रूबरू रहते थे, लेकिन आज समय काफी बदल गया है, लोग हाथों से काम करने के स्थान पर मशीनों से काम करने लगे है। आज देश के अंदर काफी कुछ बदल गया अगर जो नहीं बदला वह है हमारा सिस्टम और उसकी कार्यशैली। हमारे सरकारी मशीनरी के कारण आज भी भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर होना जारी है। अभी भी देश के अंदर बहुत सी जगहों पर सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं पहुँचा, हालत ये है कि बिजली न होने से लोग सूरज ढलते ही अपने घरों में कैद हो जाते है ज्यादातर लोग अपने काम को शाम होते -होते खत्म कर देते है, अब सोचने वाली बात है जिस जगह पर बिजली ही न हो तो वह कैसे काम करेगा, वाजिब सी बात है कि वहां पर समस्यायों का अंबार होगा। जिस जगह पर न तो बिजली हो न हो पानी हो न सड़क हो वहां पर जीवन कैसे सम्भव होगा, यह एक तरह से यक्ष प्रश्न बना हुआ है जिसका उत्तर किसी भी राजनीतिक दल के पास नही है। आज भी लोग अस्पतालों में सुविधायों का टोटा लेकर परेशान रहते है। यहां का सिस्टम इतना लापरवाह है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते है कि जब शवों को ले जाने तक को एम्बुलेंस नसीब नहीं होती और लोग रिक्शे, साइकिल और कंधों का सहारा लेते हुए दसों किलोमीटर तक का सफर तय करते है और उनको प्रशासनिक रूप से कोई भी सहारा नही मिलता, तो यह कैसे मान लिया जाय कि डिजिटल इंडिया का दौर आ चुका है और इसी भारत को ही अतुल्य भारत कहा जाता है। अब अतुल्य हम कैसे कह सकते है?जब लाशों को लोग साइकिल, ठेली या फिर पैदल ले जाने पर मजबूर हो। इसी अतुल्य भारत में जब गम्भीर हालत में तड़पते मरीज को कई किलोमीटर तक चारपाई या रिक्शो के सहारे अस्पतालों तक ले जाया जा रहा हो तो यह कैसे कह सकते है कि भारत विकास की ऊंचाइयों को छू रहा है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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