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भारतीय संस्कृति की अगर बात की जाय तो यह अनेकों प्रकार के धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों, रंग-रूपों, भाषाओं और बोलियों से मिश्रित है। भारतीय संस्कृति का यह रूप विश्व में प्रसिद्ध है। जिस प्रकार से यह भारतीय संस्कृति बनी है ठीक उसी तरीके से कई खाद्य सामग्रियों से मिलाकर खिचड़ी को बनाया जाता है। इस खिचड़ी को बनाने में देश के कोने-कोने से आई कुछ न कुछ सामग्री को मिलाया जाता है, जिसमें चावल, उड़द, अरहर, मूंग की दाल के अलावा गाजर, अदरक, धनिया भी डाला जाता है, जिससे इस व्यंजन में अतिरिक्त स्वाद हो जाता है।
अनेकों प्रकार की खाद्य सामग्री को डालकर ही इसे स्वादिष्ट बनाया जाता है, जिसको लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसी क्रम में देश के अंदर वर्ल्ड फूड इंडिया फेस्टिवल कार्यक्रम के तहत 918 किलो खिचड़ी बनाकर देश में ही नहीं पूरे विश्व में एक कीर्तिमान बनाया गया, जो गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो गया। इस तरह से खिचड़ी को भी विश्व में एक पहचान मिल गई। अब इतना तो नहीं रहेगा कि केवल डॉक्टर के कहने पर ही खिचड़ी खाई जाए।
उस तरह से देखा जाय, तो खिचड़ी एक सुपाच्य भोजन है, जो मरीज ही नहीं किसी को भी खाने के लिए उपयुक्त है। इसे खाने से हमारा पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। लेकिन ऐसे भोजन को अक्सर देखा जाता है कि एक स्वस्थ आदमी कतई खाना नहीं चाहता। खिचड़ी अक्सर लोग परिस्थिति वश ही खाते हैं। हम यूं भी कह सकते हैं इसको खाने के लिए भी एक तरह से मनुष्य को मानसिक रूप से तैयार करना करना पड़ता है, तभी वह खिचड़ी खाने को तैयार होता है।
कुछ लोग तो अपने घर पर प्रत्येक शनिवार को खाते हैं। सबकी अपनी-अपनी पसंन्द होती है। खिचड़ी भारतीय व्यंजनों में से एक है। एक फायदा इससे होता है कि कम समय में तैयार हो जाती है। अगर देखा जाय तो खिचड़ी को वो स्थान नहीं मिल पाया जो स्थान मिलना चाहिए था। लेकिन जब देश में खिचड़ी को नई पहचान दिलाने की कोशिश चल रही है, तो यह सभी भारतीय के लिए अच्छी खबर है। एक अच्छी कोशिश है जिससे कि खिचड़ी को विश्व में एक स्थान हासिल हो सके और भारतीय संस्कृति के हिसाब से सबकी खिचड़ी भी पकती रहे। जिसकी खिचड़ी पक न पाई, वो भी असफल हो जाता है।
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