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भावी पीढ़ी को जिंदा रखना है तो पटाखों का त्याग करना ही पड़ेगा

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सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री 31 अक्टूबर तक के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के बाद मुंबई हाईकोर्ट ने भी मुंबई के रिहायशी इलाकों में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। ये वही पटाखें हैं, जिनको दीपावली के पूर्वसंध्या पर छोड़ा जाता है और प्रभु राम के अयोध्या आने की खुशी मनाई जाती है।


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किसी को भी खुशी मनाने का अधिकार तो होना ही चाहिए, परन्तु एक दायरे में जिससे कि किसी अन्य व्यक्ति को तेज आवाज के पटाखों से दिक्कत न हो। इन तेज आवाज वाले पटाखों के साथ समाज और वातावरण दोनों ही दूषित हो जाते हैं। जहां समाज के लोगों का जीना दूभर हो जाता है, वहीं वातावरण में दूषित हवा के कारण लोगों को सांस तक लेने में कठिनाई होती है।


मगर आज लोगों में पटाखे छोड़ना एक शौक बन गया है और यही शौक समाज के लिए खतरा बनता जा रहा है। जिस तरह से बेतहाशा पटाखों को छोड़ा जाता है, उससे वातावरण में प्रदूषित हवा की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि कितने दिन तक मौसम धुंध बना रहा है और सूर्य की किरणें तक जमी पर नहीं आ पाती।


जिस देश में कई धर्मों के लोग निवास करते हों, वहां पर केवल अपने स्वार्थ के लिये पूरे समाज को परेशानी में डालना गलत है। तेज आवाज के पटाखे कितने नुकसानदायक होते हैं, यह दीपावली के बाद पता चलता है, जब आंखों में जलन और सांस लेने में कठिनाई होती है। अगर भावी पीढ़ी को स्वच्छ हवा में सांस लेने के लिए जिंदा रखना है, तो हमें पटाखों का त्याग करना ही पड़ेगा। नहीं तो भविष्य बहुत ही डरावना हो जाएगा।

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