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जब माता-पिता अपने बच्चों की शादी बड़े ही धूम-धाम से करते हैं, लोगों के बड़े अरमान भी होते हैं कि बहू आएगी, परिवार में खुशियों की सौगात लाएगी। अगर यही बहू खुशियों के बजाय दुःखों का पहाड़ खड़ा कर दे तो फिर उस बहू को क्या कहा जाय। यही बहू जब परिवार के लिए दुःख को छोड़ साक्षात यमराज बन जाती है, तब तो और भी स्थिति भयावह बन जाती है। जैसा कि गुरुग्राम में एक घटना घटित हुई, जिसमें बहू ने अपने सास-ससुर और जेठ का बेरहमी से क़त्ल कर दिया, वो भी सिर्फ दौलत के कारण।
आज के समय में इंसान किस स्तर तक दौलत का लालची बनता जा रहा है कि उसको रिश्ते बिल्कुल दिखाई ही नहीं पड़ते। क्या दूर क्या नज़दीक? रिश्ते का कोई मायने ही नहीं रहा। मनुष्य इतना भी नहीं सोचते कि अगर हम किसी का क़त्ल कर देंगे, तो क्या गारंटी है कि हम चैन से रह पाएंगे? पुलिस और न्याय व्यवस्था के रहते कैसे कोई क़त्ल करने के बाद आजादी से घूम सकता है।
किसी का भी क़त्ल करना किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता, ये सिर्फ हमारे मन का वहम होता है कि अगर हम उसको खत्म कर देंगे तो आराम से जीवन-यापन कर सकेंगे। ऐसा होता नहीं, क्योंकि कानून के हाथ लंबे होते हैं और अपराधी के गर्दन तक पहुँच ही जाते हैं। फिर भी लोग क़त्ल करते रहते हैं, जेल जाते रहते हैं। न तो दूसरों को जीने देते हैं और नहीं अपने जीते हैं।
आश्चर्य तो तब होता है, जब पुरुष के हमसफ़र कही जाने वाली महिलाएं भी इन पारिवारिक रिश्तों के क़त्ल को अंजाम देने में पीछे नहीं हट रही हैं। बेखौफ़ होकर वारदात को अंजाम देती जा रही हैं। अपराध के क्षेत्र में भी महिलाएं पुरुषों से कम नहीं है और ये भी अधिकतर वारदात में लिप्त रहती हैं चाहे वह छिनैती, लूटपाट या फिर हत्या करना, सब इनके लिए आसान हो गया है।
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