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आज जिस प्रकार से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है ठीक उसी प्रकार से आज के बच्चों की भी मानसिक विकृतियां बढ़ती जा रही है जिसके कारण उनकी मानसिकता को बदलने में देर नहीं लगती। संसार मे इंसान से लेकर जानवर तक को अगर देखा जाय तो सभी लोग अपनी संतान को लेकर गम्भीर रहते है और अपने सामर्थ्य के अनुरूप ही लोग बच्चों को प्यार भी देते है। हर मनुष्य जो एक पिता है को अपनी संतान के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित रहता है और वो हमेशा सोचता है कि मुझसे आगे मेरा बेटा रहे इसी चक्कर में वो बेटे को डांट भी लगाता है,लेकिन मानसिकता बदलने के कारण ही उस डांट को लड़का गम्भीरता से लेता है और वह अनैतिक कदम तक उठा लेता है। भी इसलिए कि जब उसको लगता है कि मेरा लड़का गलत रास्ते पर अग्रसर है तब, फिर यही डांट उस बच्चे को नागवार लगती है,और वो सन्तान जिसके लिए एक पिता अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।सोचने वाली बात है कि जिस पिता ने एक बच्चे को अंगुली पकड़ कर चलना सिखाने से लेकर उसको समाज के साथ दौड़ना सिखाता हो वह कैसे उस बच्चे का बुरा सोच सकता है। उस पिता को इतना तो अधिकार होना चाहिए कि वह अपने बच्चे को किसी गलत भाषा के प्रयोग पर टोक सके जिससे कि बच्चे के बोलने में सुधार आ सके। किसी को भी अगर अच्छे-बुरे का ज्ञान न कराया गया तो वह फिर उसका अंतर ही नही समझ सकता इसलिए ये भी बहुत जरूरी है कि सभी बच्चों को अच्छा-बुरा का ज्ञान हो,इसका अगर बोध बच्चो को नहीं कराया जाय तब भी समस्या खड़ी हो सकती है और इसी चक्कर में लोग अपने सन्तानों को खोते जा रहे है क्योंकि आज के समय में लोग मानसिक विकृति से ग्रस्त होते जा रहे है और उनका दिमाग अच्छा-बुरा का अंतर नहीं कर पाता जिसके फलस्वरूप वो मौत को गले लगा लेते है, लेकिन समाज के लिए बहुत ही चुनौती पूर्ण प्रश्न जो आज खड़ा हो रहा है वो ये है कि क्या माता-पिता को अपनी संतानों को स्वछंद रूप से छोड़ देना उनके हित में रहेगा।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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