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गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कालेज हो या फिर दिल्ली का दयानंद अस्पताल या फिर छत्तीसगढ़ का हास्पिटल हर जगह पर एक ही कमी दिखती है और वह है चिकित्सकों और कर्मचारियों की लापरवाही, लापरवाही भी इस कदर कि जो क्षम्य न हो, अर्थात कुछ डॉक्टर तो भ्रष्टाचार में संलग्न होने के कारण बच्चों की जान ले रहे है तो कुछ अपने कर्तब्य के प्रति दिलचस्पी न लेने के कारण लापरवाह हो रहे है,लेकिन कारण कोई भी हो पर बच्चे तो मर रहे है। ये भी कितनी अजीब विडंबना है कि जब तक ये नौनिहाल इस संसार में आकर कुछ समझने की कोशिश करते तब तक उनकी सांस को रोक दिया जाता है और दुनिया से अनजान ये बच्चे वैसे ही वापस हो जाते है जैसे आये थे। चाहे बच्चे किसी के हो, किसी धर्म, जाति के हो बच्चे तो बच्चे होते है और ये जिसके भी होते है उसके लिए प्राण से भी प्रिय होते है अब चाहे वह गरीब हो या फिर धनी, लेकिन दोनों का प्यार का पैमाना बराबर होता है, लेकिन चिकित्सक इस बात से क्यों अनभिज्ञ रहते है उनको क्यों नही लगता कि हमारी लापरवाही के कारण किसी के घर का चिराग बुझ सकता है? और वह परिवार हो सकता है कि उसी छोटे से बच्चे की मौत के बाद समाप्त भी हो जाय, क्योकिं सदमा बर्दाश्त न कर पाएं। आज देश के अंदर चिकित्सा का क्षेत्र भी भारी भ्रष्टाचार की जकड़ में आ चुका है और यही कारण है कि मरीज मरते रहते है और डॉक्टर कमीशन के चक्कर मे लगें रहते है। आज चिकित्सा को भी पूर्णतया व्यापार की तरह ढाल दिया गया है जिसके कारण अब इलाज भी मंहगा होता जा रहा है और आम आदमी के लिए इलाज करवाना टेढ़ी खीर भी साबित हो रहा है। बिन पैसे के अगर कोई ये सोचे कि हमारा इलाज निःशुल्क हो जाय तो यह असंभव है, सरकारी अस्पतालों में भी जब तक कुछ पैसे न दिया जाय तब तक एक इंजेक्शन भी लोग नहीं लगाते और मरीज या मरीज के परिजन उस वार्ड ब्वाय के पीछे चक्कर लगाते रहे।इसी सब के बीच लोगों को जीवन देने वाला आक्सीजन भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है जिसको खरीदने में भी कमीशन की पेशकश की जाती है और अगर कमीशन पर्याप्त ढंग से नहीं मिला तो फिर यह आक्सीजन उसी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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