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प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री या फिर सरकार का कोई मंत्री, अगर ये लोग अपने कर्तव्य के प्रति सजग हैं, लेकिन उनके मातहत अधिकारी या कर्मचारी सही तरीके से आचरण नहीं कर रहे हैं या यूं कहें कि वे अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं तो इसमें भी दोष पीएम या सीएम का ही आना है। इसलिए अधिकारी और कर्मचारी दोनों को ही सरकार को सहयोग करना चाहिए।
आज तकरीबन हर आॅफिस में लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी मिल ही जाते है। यहां तक कि अस्पतालों के अंदर भी लापरवाही देखने को मिल जाएगी। हम अस्पतालों की अगर हम बात करें तो यह वह जगह है, जहां पर मनुष्य पहुँचकर मानसिक रूप से संतुष्ट हो जाता है कि मैं या मेरा कोई प्रियजन जो भी अस्वस्थ है, उसका कष्ट खत्म हो जाएगा और वहां से स्वस्थ होकर निकल जाएगा। मगर हमको क्या पता कि जिन मासूमों को हम अच्छा होने के लिये भर्ती किये हैं वे एक दिन प्रशासन की लापरवाही के भेंट चढ़ जाएंगे। अस्पताल ही उनकी मौत का कारण बनेगा।
किसी को यह कतई पता नहीं होता कि मैं लापरवाह प्रशासन की भेंट भी चढ़ सकता हूँ। जी हां ऐसा भी हो सकता है कि प्रशासन आपकी या आपके मासूमों की जान ले ले। बड़े अफ़सोस की बात है कि जो घटना गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल काॅलेज में हुई यह बहुत ही खतरनाक था। यह घटना और भी शर्मनाक है, क्योंकि मात्र पैसे की वजह से बच्चों की जान चली गयी।
भुगतान न होने के कारण आॅक्सीजन की आपूर्ति रोक दी जाती है , जिसके कारण हमारे 60 नौनिहाल बच्चे इस लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं। क्या यह प्रदेश के लिए शर्मिंदगी की बात नहीं है कि जितने मासूम मारे गए हैं उनका सिर्फ एक कारण आॅक्सीजन की आपूर्ति न होना था। प्रशासन ने क्यों भुगतान रोक रखा था, इस बात का भी पता होना चाहिए।
सबसे बड़ी लापरवाही शासन स्तर की है कि जब छोटे कर्मचारी आॅक्सीजन की कमी की बात कर रहे थे, तो फिर इसको अनसुना क्यों कर दिया गया? क्यों उनकी बातों को गम्भीरता पूर्वक नहीं लिया गया। इस घटना के बाद हद तो तब हो गयी जब मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक का बयान असंवेदनशील तरीके से आ रहा है।ये लोग वास्तविकता को स्वीकार न करके बिना मतलब का उत्तर दे रहे हैं, जो बिल्कुल इन मौतों से मेल नहीं खाती। इतने भारी पैमाने पर हुई बच्चों की मौत को अगर हम नरसंहार की संज्ञा में रखें, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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