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रिश्तों का कलियुगी स्वरूप

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एक मनुष्य को सबसे समझदार प्राणियों की श्रेणी में सिर्फ इसलिए रखा गया कि इनके पास इंसानियत का एक ऐसा खजाना है जो कि सम्पूर्ण पृथ्वी को एक परिवार के परिदृश्य में देख सकते है परन्तु आज अफ़सोस की बात यह है कि मनुष्य जिस वातावरण में जिस मानसिकता को रखते हुए निर्वहन कर रहा है वह बहुत ही दुखद है।आज लोग रिश्तों का कोई मतलब ही नहीं समझते और क्षण भर में उस रिश्तों का गला घोंट देते है, मर्यादा नाम की चीज मिलना भी मुश्किल हो जाता है क्योकि जिस प्रकार की घटना इलाहाबाद के अंदर घटित हुई ये तो बिल्कुल ही रिश्तों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया, जिसमें एक नाबालिग लड़के ने अपने पुलिस पिता को सिर्फ इसलिये गोली मार दिया कि उसका पिता बार-बार पढ़ने के लिए कहता था। अब इस नाबालिग लड़के को पिता का बार-बार टोकना इस कदर मानसिकता को बदल दिया कि उसने सोते हुए पिता की कहानी ही खत्म कर दिया, यही नहीं ऐसी ही तमाम घटनाएं देश के अंदर होते रहते है जिसमें टोका-टाकी से लड़के इतने विचलित हो जाते है वह अपने माता-पिता की हत्या करने में बिल्कुल ही नहीं संकोच करते।अभिभावक कोई भी सबकी सोच यही होती है कि मेरा उत्तराधिकारी मुझसे आगे जाएं और यही आगे ले जाना ही गले का फांस बनता जा रहा है।आश्चर्य की बात ये है कि जब माता-पिता अपनी सन्तान के उज्ज्वल भविष्य को लेकर ही उनको डांट लगाते है तो बच्चे इतना भड़क क्यों जाते है उनके समझ में ये क्यों नहीं आता कि एक माँ या पिता कभी भी हमारे बारे में गलत नहीं सोचेगा और जब भी सोचेगा तो कुछ अच्छा ही सोचेगा, लेकिन नकारात्मक सोच और स्वच्छंद रहने की मानसिकता के कारण बालक अपने को संभाल नहीं पाता, या यूं कहें कि वह अपने संस्कार को खो देता है और इस प्रकार की वारदात को अंजाम देता है मानवता ही छिन्न-भिन्न हो जाती है। आज सबसे बड़ा सवाल यही है की इस कलियुगी समय बच्चे परिवार में बिल्कुल खुश नहीं करते और उनको ज्यादा टोका-टाकी बिल्कुल पसंद नहीं आती, वे अपने माता-पिता की बातों से बोझिल हो जाते है जिसके कारण ही ये बच्चे रिश्तों का ख्याल नहीं करते और रिश्तों का ही क़त्ल कर देते है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा

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