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मनुष्य के शरीर में दो हाथ होते हैं, एक बायां और दूसरा दायां। अगर एक हाथ ठीक तरह से काम कर रहा है, तो यह कोई जरूरी नहीं है कि दूसरा हाथ भी ठीक तरह से ही काम करेगा। आज समाज में भी यही हाल है। यह समाज दो ही हाथों से नहीं, कई हाथों के द्वारा निर्मित है।
अब अगर कई प्रकार के धर्म के लोग इस भारतीय संस्कृति में रहेंगे, तो कोई जरूरी नहीं है कि सभी धर्म के लोग अपने धर्म के प्रति ईमानदार हों। इसी समाज में एक धर्म है मुस्लिम धर्म, जिसकी अपनी संस्कृति है, अपनी वेशभूषा है, अपना सिद्धान्त है, लेकिन इस धर्म के कुछ भटके युवक मुस्लिम धर्म को बदनाम करने में लगे हैं।
इस धर्म के अधिकांश लोग रोज नमाज में या फिर अपने त्योहारों पर अमन-चैन की दुआ माँगते हैं। ये मानव जीवन के लिये दुआ मांगते है, तो दूसरी तरफ आतंक के पुजारी भी अल्लाह से अमन-चैन कायम न होने की गुज़ारिश करते रहते हैं। यह भी एक बिडम्बना ही है कि एक ही धर्म में दो प्रकार की विचारधारा के लोग हैं।
एक वर्ग तो देश-दुनिया और समाज के लिए अमन-चैन मांग रहा है, जबकि दूसरा वर्ग अमन-चैन छीन रहा है। आतंकियों का धर्म मुस्लिम नहीं होता, वे केवल एक धर्म में पैदा होते हैं। आदमी का धर्म उसके कर्म से ही जाना जाता है। क्योंकि रावण भी ब्राह्मण था, लेकिन उसके कर्म राक्षसी थे, इसलिये हम उसको राक्षस ही कहते हैं, न कि ब्राह्मण। मनुष्य का कर्म ही सर्वश्रेष्ठ होता है, इसीलिए इसकी महत्ता के बारे में रामचरित मानस में तुलसीदास ने भी यही बताया है कि ‘कर्म प्रधान विश्व रुचि राखा’।
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