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पांच राज्यो के परिणाम आने के बाद जिस प्रकार से कुछ पार्टियों का सूपड़ा साफ हुआ , उन पार्टियों के द्वारा दुष्प्रचार करना एक तरह से प्रासंगिक था क्योंकि जो भी हारता है उसके पास रोने के अलावा कोई चारा नही रहता, अगर कोई खिलाड़ी हारता है तो उसको पिच में ही खोट दिखाई देंगी, इसी प्रकार अगर एक परीक्षार्थी परीक्षा में फेल हो जाता है तो वह यह कभी नहीं कहेगा कि मैंने पढ़ाई नहीं कि बल्कि वह दोष प्रश्न-पत्र का देगा कि अध्यापक ने कठिन बनाया, इसी प्रकार से मायावती और अरविंद केजरीवाल अपनी गलती छिपाने के बजाय ईवीएम पर ठीकरा फोड़ना आसान समझे और उसी प्रसंग में चुनाव आयोग को भी खूब सुना दिया, इतना ही नही अरविंद केजरीवाल ने ईंट से ईंट बजाने की धमकी भी लगे हाथों दे दिया , जबकि इन दोनों नेताओं को किसी पर आरोप लगाने के पहले एक बार अपने अंदर भी झांकना चाहिए था कि कहीं मेरे अंदर तो कमी नही है , फिलहाल इन दोनों के अलावा और भी पार्टियों ने ईवीएम पर सवाल खड़ा किया, तो जाहिर सी बात थी कि चुनाव आयोग सफाई के लिए सामने आएगा, सो वैसा ही हुआ चुनाव आयोग आया और सभी पार्टियों को चैलेंज कर दिया कि कोई भी पार्टी छेड़छाड़ कर दिखाए, लेकिन अफसोस कि इतना हो-हल्ला करने के बावजूद भी कोई भी पार्टी चुनाव आयोग का चैलेंज स्वीकार नही कर सकी, अब सवाल हर उन पार्टियों के लिए है कि जब आप लोग चुनाव आयोग तक जाने की हिम्मत नही जुटा सके तो बेमतलब का नाटक करने की क्या जरूरत, क्या भारत जैसे लोकतंत्र देश का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है या फिर यह मोदी सरकार को बदनाम करने की साजिश थी, कि जनता के बीच ग़लत संदेश जाये।आश्चर्य कि बात ये है कि इस झूठ को सच बताने के चक्कर में 16 पार्टियों के प्रतिनिधि राष्ट्रपति तक पहुँच कर ईवीएम गलत सिद्ध करने में अपना पक्ष सिद्ध करने में भी नही चुके, अब जब कोई भी पार्टी ईवीएम को गलत नही साबित कर पायी तो चुनाव आयोग को चाहिए कि इन पार्टियों पर एक वाद दायर कर दिया जाय जिसमे चुनाव आयोग को बदनाम करने की साजिश छिपी हुई हो, इसलिए हर पार्टियों को पूर्वाग्रह से निकल कर साथ काम करना चाहिए। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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