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इंसानियत से हैवानियत का सफर

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इंसान की तुलना हर प्राणियों के अपेक्षा काफी समझदार प्राणी के रूप में होती है और इस रूप का सभी लोग सम्मान भी करते है। एक मनुष्य तभी तक अच्छा लगता है जब तक वह सामाजिक तौर पर कार्य करता है लेकिन आप इंसान का वह रूप कभी भी स्वीकार्य नही करोगे जिसमें वह हैवान बनते दिखे, इंसान का यह रूप काफी गिरा हुआ होता है और सम्भवतः यह किसी को स्वीकार नही होना चाहिए,क्योकि यह रूप असामाजिक है।आज जिस प्रकार से महिलायों की इज्जत को तांख पर रख कर इंसानियत का नंगा नाच खेला जा रहा है उससे तो यही साबित होता है कि इंसान मनुष्य के रूप में राक्षस बनता जा रहा है क्योंकि ऐसे ही एक घटना को जिस प्रकार से अंजाम दिया गया इससे तो फिलहाल यही साबित होता है। साइबर सिटी गुरुग्राम में हैवानियत का जो खेल खेला गया , यह पुरुष प्रधान देश को यह बताने के लिए काफी है कि मनुष्य अपना आचरण किस स्तर तक गिरा सकता है, और इंसानियत का गला कैसे घोट सकता है। यह घटना किसी शर्मिदगी से कम नही है जिस तरह से एक असहाय महिला के साथ कुछ लोगों ने दरिंदगी दिखाई, वह इंसान के लिए शर्म करने के लिए काफी है, ये दरिंदे इतने खतरनाक तरीके से उस महिला के साथ पेश आये कि उन्होंने इसकी छोटी बच्ची को जमीन पर पटक दिया और वह बच्ची जब तक अस्पताल पहुँचायी जाती तब तक उसने दम तोड़ दिया।अपने छोटी बच्ची को लेकर रात के अंधेरे में निकलना उस महिला को कितना भारी पड़ा उसका बया तो यह महिला कर सकती है बाक़ी जो इंसान होगा उसको इस औरत का दर्द महसूस होगा, लेकिन जो मनुष्य की शरीर लिए राक्षस हृदय का है उनको इस पीड़ा का आभास नहीं हो सकता, ऐसे हैवानों ने ही जगह-जगह और समय-समय पर इंसानियत का गला घोंटते रहे है। आज के समय में सरकारे कोई भी हो किसी भी राज्य की हो वादे तो सभी लोग करते है लेकिन कोई भी यह गारंटी नही देता कि उसके यहां महिला सुरक्षित है, बड़े आश्चर्य की बात है कि इन तमाम खोखले दावों के ही कारण महिलाएं इन हैवानों से अपने को बचाने में असफल रहती है, जबकि महिला सुरक्षा के लिए पुलिस भी दावा करती है कि हम चौबीस घण्टे उपलब्ध रहते है लेकिन दिन हो या रात जब भी कोई घटना घटित होती है तो पुलिस नहीं मिलती और अपराधी अपराध करके बड़े आराम से निकल जाते है, पुलिस घटना के बाद भी एफआईआर तक दर्ज नहीं करना चाहती और उसको अंततः कोर्ट या पुलिस के बड़े अफसर से संपर्क के आदेश के बाद ही एफआईआर दर्ज होता है, उसके बाद न्याय के लिए लंबी लड़ाई लेनी पड़ती है लेकिन हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस प्रकार की दरिंदगी का खेल कब तक चलता रहेगा, इंसान कब तक हैवानियत का सफर तय करते रहेंगे।इसलिए सरकार को चाहिए कि वह इन दरिंदो के लिए कोई कठोर नियम बनाये जिससे कि इन पर कड़ा शिंकजा कसा जा सके।।            *****************************************नीरज कुमार पाठक               नोयडा

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