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हमारे देश की बड़ी अजीब विडंबना है कि एक तरफ तो हम बुलेट ट्रेन का सपना देखते है दूसरी तरफ अगर सरकार के तरफ से कोई अच्छी गुणवत्ता की ट्रेन चलाने की पहल भी होती है तो उसको सुचारू रूप से चलने नही देते, ऐसी ही एक सरकार की योजना थी कि मुंबई से गोवा तक एक अच्छे क्वालिटी की ट्रेन चलाई जाए ,जिसके फलस्वरूप सरकार ने इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तेजस एक्सप्रेस को चुना गया , अब इस ट्रेन को चलाने के पहले ही कुछ लोगो ने कोच के शीशे को तोड़ कर इतना बता दिया कि हम सुधरने वाले नही है, जबकि इस ट्रेन के अंदर आधुनिकता के अनुसार तमाम सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है जिससे कि यात्रियों को ज्यादा से ज्यादा आराम मिल सके, लेकिन अभी भी हमारे देश की सोच को जापान की सोच में परिवर्तित करने में काफी समय लगेगा। सबसे आश्चर्य की बात यही है कि हम जापान की तरह बुलेट ट्रेन को दौड़ाना तो चाहते है परंतु अपनी घटिया सोच को क्यो नही बदलते, इसलिए हमको सबसे पहले इस घटिया सोच को बदलना होगा, न कि बुलेट ट्रेन का सपना देखना होगा, क्योकि इसी गन्दी हरकत के कारण लोगो ने महामना एक्सप्रेस के साथ भी ऐसा ही बुरा बर्ताव किया था, और इतनी बढ़िया ट्रेन को लोगो ने भारतीय ट्रेनों के कतार में खड़ा कर दिया। सरकार की हर सम्भव कोशिश होती है कि देश के नागरिकों को अच्छी से अच्छी सुविधा मुहैया कराया जाय, इसी कड़ी में सरकार ने पुराने ढर्रे की ट्रेन को नए मॉडल में परिवर्तित करने की आशा के फलस्वरूप नई तकनीक की ट्रेन को जनता की सुविधा के अनुसार लाया गया, लेकिन जनता का दुर्भाग्य कहे या देश का, लोगो ने इन ट्रेनों की हालत ऐसी खराब कर दी कि अगर जिसने इन डिब्बों का निर्माण किया है वह देख जाए तो उसको भी दर्द होगा कि मैंने इन डिब्बो का निर्माण भारत के लिये क्यो किया। आज मनुष्य को ऐसी मानसिकता छोड़ जापान सरीखे देश के नागरिकों की तरह सभ्यता का परिचय देना चाहिए और दोहरा आचरण छोड़ कर मनुष्य को एकांकी आचरण का पालन करना चाहिये, क्योकि मनुष्य जब तक अपनी मानसिकता को नही सुधारता है तब तक बहुत ही मुश्किल है देश को आगे ले जाना। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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