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अगर हम किसी राजनेता को चुनते है तो इसका मतलब यह कतई नही होता कि वह संसद या विधानसभा में जाकर असभ्य आचरण करें , और मान-मर्यादा को तांख पर रख दे, राजनेताओँ का वह आचरण जिसको देखकर आम जनता भी यह सोचने को मजबूर हो जाये कि मैंने इस नेता को आखिर चुना क्यों। जिस राजनेता को हम देश की जिम्मेदारी के लिए चुने थे वह कैसी हरकत कर सकता है। इनका क्या काम है और ये क्या कर रहे है। जिस नेता के ऊपर जनता की समस्याओं का निराकरण करने का काम सौंपा गया है वह नेता बच्चों जैसी हरकत करने लगे तो आप क्या कहोगे। जब राजनेता लोग संसद या विधानसभा में जाकर लाउडस्पीकर तोड़े और उससे एक-दूसरे के ऊपर हमला करे या फिर कागज के गोले बनाकर अध्यक्ष के ऊपर फेंके या सीटी बजा कर व्यवधान पैदा करे, तो यह आचरण कही से भी सभ्य राजनेता की छवि को परिलक्षित नही करता, यह आचरण राजनेताओं की साख को मिट्टी में मिला देता है। बड़े शर्म की बात है कि इन राजनेताओँ का आचरण बिल्कुल अनपढों की तरह होता है जिनको मान-सम्मान की परवाह नही होती और वो अपने असभ्य कामों में मशगूल रहते है, बल्कि ऐसा आचरण एक निरक्षर भी नही करेगा, उसको भी अपने साख की दर नही तो कम से कम संसद की गरिमा जरूर याद होगी। आज के समय में जहाँ करोड़ो रूपये का खर्चा एक दिन का आ जाता है संसद को चलाने के लिए, और जितने भी दिन संसद या विधान सभा की कार्यवाही में खत्म हो जाते है, लेकिन इन नेताओं को पैसे की तनिक भी परवाह नहीं होती। सरकार को चाहिए कि एक ऐसा कानून बनाएं कि जो भी इस तरह के असभ्य आचरण करता हो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई किया जा सके या फिर उसको कुछ वर्षों के लिये निलंबित कर दिया जाय , जिससे कि संसद के अंदर ऐसे लोग न आ सके जो संसद की गरिमा से अनभिज्ञ हो और उनको संसद की महत्ता का कुछ भी पता न हो, ऐसे असभ्य नेता को संसद के अंदर जाने से रोकने के लिए जरूर कुछ कदम उठाना चाहिये, जिससे कि आने वाली पीढ़ी संसद की मर्यादा को समझे, और कभी भी ऐसा असभ्य आचरण देखने को न मिले। *****************************************
नीरज कुमार पाठक नोयडा
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