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आज के समय में लोग इस कदर व्यस्त है कि उनके पास किसी का दुःख दर्द समझने का वक्त ही नही रह गया , हर व्यक्ति की व्यस्तता और उसकी भागदौड़ इतनी बढ़ गयी है कि वह अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी मनुष्य से रुक कर ये पूछ ले कि आप कैसे हो। इसलिए जिंदगी में मनुष्य के पास जहां इतना समय नहीं है कि वह रुक कर किसी परिचित का कुशल-क्षेम पूछे, वही छोटी-छोटी बात पर यही समझदार प्राणी अपना धैर्य इस तरह खो देता है जैसे कि उसके परिवार में संस्कार का लोप हो और उसके कृत्य ऐसे होते है जैसे कि मनुष्य न होकर जंगली जानवर हो, इस तरह की हरकत तो आदिवासियों के द्वारा भी नहीं किये जाते है , जबकि मनुष्य को सामाजिक प्राणी के तौर पर माना जाता है उसके बावजूद उसके आचरण असभ्य क्यों होते जा रहे है यह चिंता का विषय बनता जा रहा है। मनुष्य का क्रोध पर नियंत्रण बिल्कुल नही रह गया है वह छोटी बात पर भी बड़ा बवाल खड़ा कर देता है। यहां तक कि अगर रोड पर चलते समय गाड़ी से किसी को धक्का लग जाता है तब भी उस बात को बड़े बनाकर मारपीट की जाती है, कभी-कभी इसी मारपीट में किसी न किसी की जान भी चली जाती है, ऐसी घटनाओं पर मनुष्य अपना आपा खो देता है। यह सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है कि मनुष्य किस प्रकार का आचरण करता जा रहा है ,जैसा मनुष्य की हरकत होती जा रही है वैसी हरकत तो जानवर भी नही करते, सहनशीलता मनुष्य से दूर होती जा रही है, जब एक पति गुस्से में अपनी पत्नी को छत से नीचे फेंक सकता है तो वह क्या नहीं कर सकता है। इसी सहनशीलता की कमी के कारण ही रोडरेज की वारदात में काफी इजाफा होता जा रहा है, लेकिन यह कोई मानने को तैयार नही होता कि गलती हमारी है और इसी अहं के कारण मारपीट होती है।इसलिए मनुष्य को धैर्य का परिचय देना चाहिए,और बिल्कुल आग-बबूला नहीं होना चाहिए ऐसा होने से अपना तो नुकसान होता ही है और दूसरे का भी नुकसान ही होता है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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