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फतवा भी समाज में एक प्रदूषण की तरह देश के अंदर पैर पसारना शुरू कर दिया है, बात-बात पर फ़तवा जारी होने से यह एक सामाजिक रोग की तरह बनता जा रहा है, जिसके कारण आज समाज में लोग बोलने की मर्यादा को भी भूल रहे है और उसी भूल का फल होता है फतवा का जारी होना,फ़तवा अब किस प्रकार का होगा यह तो उस व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है कि उसकी मानसिक दशा किस प्रकार की है क्योंकि वह तो गर्दन काटने या जीभ काटने का फ़तवा जारी कर सकता है और इसको जारी करने में समय बिल्कुल ही नही लगता , बोलने के कुछ ही घन्टो के अंदर फ़तवा जारी हो सकता है। लेकिन यही फ़तवा अगर किसी की मदद करने के लिए जारी किया जाय या फिर किसी की ग़रीबी मिटाने के लिए जारी किया जाय , या फिर महिलायों की सुरक्षा करने के लिए जारी किया जाय तो यह बढ़िया होता , लेकिन अफ़सोस कि यह जारी होता है किसी की गर्दन काटने के लिए, या किसी का मुंडन करने के लिए। ये लोग ये भी नहीं देखते है कि हम फ़तवा किसके विरुद्ध जारी कर रहे है , फ़तवा का मतलब ये नहीं होता कि पीएम या राष्ट्रपति के भी खिलाफ़ जारी कर दिया जाय, और सबसे बड़ी बात ये है कि फ़तवा जारी करने वाला एक करोड़, पचास लाख, दस लाख आदि के इनाम जारी कर देते है। जबकि फ़तवा तो कोई भी जारी कर सकता है लेकिन उस फ़तवे की रकम को पूरा करना उसके वश की बात नही है, फिर भी लोग बड़ी राशि की घोषणा कर देते है। अब यह भी एक शौक बन गया है जिससे की लोग मुझे जाने, प्रसिद्धि प्राप्त करने का एक शार्ट कट रास्ता को लोग ज्यादा पसंद कर रहे है यही कारण है कि फ़तवा का धर्म की आड़ में दुष्प्रचार कर रहे है। इसलिए फ़तवा जारी करने के बाद इसका विरोध भी शुरू हो जाता है क्योंकि यह कहीं न कहीं जरूर गलत प्रथा है जिसको सही तरह से आकलन की भी जरूरत है, जिससे की बेकार तरीके से जारी फ़तवे पर रोक लगाई जा सके।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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