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आज के समय में अगर हम यू कहे की स्वार्थ के कारण ही पूरा विपक्ष एक होने का दिखावा कर रहा है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि आज की परिस्थिति ही ऐसी बन रही है कि विपक्ष को मजबूर होना पड़ रहा है एक होने के लिए, अब इसको मोदी का डर कहे या सत्ता भोग के लिए एक भगीरथ प्रयास, लेकिन विपक्ष तो फ़िलहाल इसी उद्देश्य में लगा है कि हो सकता है सब लोग मिलकर मोदी को 2019 के लोक सभा चुनाव में पराजित कर दें, अब ऐसा होगा या नही यह तो समय बताएगा, लेकिन विपक्ष गठबन्धन तो बना सकता है लेकिन प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये सबसे गम्भीर विषय है। जहां तक अगर देखा जाय तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लोग पसंद तो करते है लेकिन पीएम के रूप में नहीं, नितीश के विरोधियों में सबसे पहला नाम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और नीतीश के सहयोगी लालू यादव के गले के नीचे बात उतरने वाली नहीं है ये दो ऐसे नेता है जो कभी भी नही चाहेंगे कि नीतीश कुमार को पीएम के रूप में ताजपोशी किया जाय , विपक्ष की सोच ये है कि वे चाहते तो है कि भाजपा के विजय रथ रोक दिया जाय लेकिन कोई भी नेता अपना बलिदान देना नही चाहता , क्योकि पीएम बनने की इच्छा सबके अंदर प्रबल रूप से होती है और इसी प्रकार से अगर हम ईवीएम की बात करे तो विपक्ष के लिए वह उसी जगह पर ख़राब है जहाँ पर उसकी हार हुई है लेकिन जहां पर ये लोग जीत गए वहां ईवीएम सही है। दिल्ली में विधानसभा के चुनाव में केजरीवाल के लिए यही ईवीएम सही है जब 70 में से 67 सीटे मिली थी, लेकिन इंही केजरीवाल के लिए पंजाब में ग़लत है, अखिलेश यादव के लिए 2012 में ईवीएम सही था लेकिन 2017 में गलत हो गया , यही हाल बाक़ी सभी नेताओं की है जो अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ना चाहते है।ये अपने अंदर उस कमी को नहीं खोजते जिसके कारण उनकी पराजय हुई है, उस कारण को खोजना चाहिए न कि ईवीएम पर दोषारोपड़ करना चाहिए, हर मनुष्य को किसी पर लांछन लगाने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए कि मैं जो लांछन लगा रहा हूँ वह कहाँ तक सत्य है।सत्य के तह तक जाना चाहिए तदुपरांत ही किसी पर कोई छीटाकशी करना चाहिए, लेकिन देश में नेतायों के अंदर इस हार का ऐसा पूर्वाग्रह बैठ चुका है कि वह वह उससे निकलने के लिए रास्ता खोजने में लगे है, इसलिये उनको इस पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर कुछ धनात्मक सोच रखनी चाहिये।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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