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देश के अंदर नदियों को पूजने की बहुत पुरानी परंपरा है,और इस परंपरा के लिहाज से इन भारतीय नदियों को मां की तरह सम्मान भी दिया जाता है, लेकिन सिर्फ कागजों पर ही यह सब कुछ होता है,जबकि वास्तविकता ये है कि धरातल पर कुछ भी दिखाई नही देता ,यहां के लोग अपनी मानसिकता को नहीं बदल पा रहे है और उसी के कारण इन नदियों में गंदगी का प्रवाह किया जाता है,और गंदगी को भरपूर तरीके से फैलाया जाता है। इसी को नजर रखते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट को यह कहना पड़ा कि नदियों को भी जीवित व्यक्ति की तरह सम्मान दिया जाय,कोर्ट का यह फ़ैसला अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस देश में अब एक प्रकार का चलन भी हो गया है कि जब तक कोर्ट का डंडा न पड़े तब तक कोई भी सुनने वाला नही है और हर मामले को आदेश के रूप में न दे तब तक कोई कार्रवाई भी नहीं होती। उस तरह से गंगा की सफाई के लिए समय-समय पर सरकारों ने कदम तो उठाएं है मगर यह सब योजना ठंडे बस्ते में चली जाती है,और सफाई के नाम पर रह जाता है ढाक के तीन पात। इसलिए अगर इस जीवनदायिनी को बचाना है तो हम सबका और सरकारों का भी दायित्व बनता है कि सभी लोग सामूहिक रूप से मिल कर इस मोक्षदायिनी गंगा और यमुना को स्वच्छ रखें,जिससे की इस मानव सृष्टि को बचाया जा सके और फिर आने वाली पीढ़ी भी सुरक्षित रहे क्योंकि अगर हमारे नदियों का जल दूषित हो गया तो यह मानव समाज के साथ सृष्टि का अंत भी निश्चित है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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