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नकल की बीमारी से ग्रसित शिक्षा

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उप्र में जिस तरह से नकल माफिया अब भी सक्रिय है और अपने काम को बख़ूबी अंजाम दे रहे है,यह सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नही है क्योंकि सरकार के लाख कड़ाई करने के बावजूद भी इन माफियाओं का खेल उनके मन मुताबिक चल रहा है। इन माफियाओं की जड़ कितनी गहरी है इसका अंदाजा सरकार को भी नहीं हो पा रहा है। नकल माफिया हर जगह सक्रिय है , चाहे वह कोई भी जिला हो,हर जगह एक ही कहानी चल रही है। अब चाहे अलीगढ़ हो या आज़मगढ़, हर जगह का यही हाल है,नकल रुकने का नाम नहीं ले रही है। परीक्षा शुरू होने के पहले बकायदा स्कूलों में श्रेणी के हिसाब से काउंटर बनाएं जाते है जो जिस श्रेणी में पास होना चाहता है उसको उसी काउंटर पर जाना पड़ता है। जो जितना पैसा खर्च करता है उतने ही अच्छे नंबर से पास होता है। इस समय बाहुबली स्कूल प्रबंधकों की कमी नहीं है जो अपने स्कूल के अंदर हर अध्यापक को दबाव में रखते है और उन पर इतना दबाव होता है कि अध्यापक की नकल कराने की मजबूरी बन जाती है, क्योंकि अगर कोई अध्यापक नकल नहीं कराता है तो उसकी नौकरी जानी तय है,या फिर किसी शूटर के सहारे गोली मार दी जाती है। इसलिए सतेंद्र दूबे के रास्ते पर कोई नही चलना चाहता है जिन्होंने सच को बताने के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। यह इंटर कालेजों का ही नहीं प्राइवेट पालीटेक्निक और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के भी यही हाल है जो शिक्षा के आड़ में अंधाधुंध खेल खेला जा रहा है और आगामी परीक्षाओं के लिए अभी से पांच से दस हजार रुपये जमा होने शुरू हो गए है। सबसे बड़ा आश्चर्य तब होता है जब छात्र के अभिभावक भी इतना पैसा देने के लिए तैयार हो जाते है और अपने हाथों से ही अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। सभी बड़ी समस्या यह है कि जिसके पास पैसा है उसको किसी प्रकार की समस्या नहीं होती वह पैसे के बल पर डिग्री लेता है और पैसे के बल पर नौकरी भी प्राप्त कर लेते है भले ही आफ़िस में काम न करें। इसलिए इस बीमारी के बारे में हो सकता है मुख्यमंत्री को शायद पता न हो नहीं तो इसका इलाज जरूर ढूंढ लेते है।। ****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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