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वृद्धावस्था का दंश

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अगर किसी भी पौधे को रोपित किया जाता है तो उसका कुछ न कुछ उद्देश्य जरूर होता है,क्योंकि बिन उद्देश्य कोई भी काम नहीं होता फिर इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही हम पौधे को खाद,पानी के द्वारा सिंचित करते है और आशा भी करते है कि जब यह पौधा,बृक्ष के रूप में परिवर्तित होगा तो इसमें से छाया के अलावा फल और ईंधन भी मिलेगा,इसी लालच के कारण ही लोग पौधे से बृक्ष बनाते है,लेकिन हैरानी तब होती है जब किसी कारण से बृक्ष से फल की प्राप्ति नही होती है और माली की सभी आशा का महल भरभरा कर गिर जाता है। अब इस बात का अनुमान भी आसानी से लगाया जा सकता है कि जो व्यक्ति रात-दिन एक करके पौधे से पेड़ बनवाने का सफर पूरा कराया उसके में क्या खोट रह गई जो सपना को सपना बना कर छोड़ दिया तो फिर उस माली को कितना कष्ट होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है,ठीक उसी प्रकार से एक पिता भी अपने बच्चे को अंगुली पकड़ कर सड़क पर चलना सिखाता है जिससे की यह बच्चा जिंदगी के सफर पर नि:संकोच रूप से दौड़ सके, लेकिन जब वही बच्चा एक पुरुष के रूप में परिवर्तित हो जाता है तब उसको अपने पिता से ही दिक्कत महसूस होने लगती है,और यह दूरी यहां तक बढ़ जाती है कि वह लड़का अपने पिता को वृद्धाश्रम की दहलीज पर छोड़ देता है। फिर यही पिता अपने जिंदगी के दर्द को लेकर उस आश्रम के दिवारों में ही उसकी ख़्वाहिश दफन हो जाता है।एक पिता अपने क़िस्मत को कोसते हुए उस लड़के के बारे में सोचता है कि कहीं न कहीं हमारे संस्कार में कमी रह गयी जो मुझे इस आश्रम तक आना पड़ा। एक पिता बेशक़ अपने लड़के को स्वार्थ के कारण ही क्यों न उसकी परवरिश करता हो मगर फिर भी एक बार लड़कों को यह जरूर सोचना चाहिए कि यह वही पिता है जिसने जमीन पर गिरने के बाद खड़ा होने तक के सफर को सहारा दिया, फिर ऐसे माता-पिता के साथ उनकी सन्तानें ऐसा क्यों करते है,जबकि उस सन्तान को ये भी पता होता है कि एक न एक दिन मुझे भी इसी दौर से गुजरना पड़ेगा फिर भी आदमी अपने अभिभावक या माता-पिता के साथ ऐसा निंदनीय वर्ताव करता है जिससे कि समाज के निगाह में गिर जाता है,इसमें भी हम पूर्णतया नही कहा जा सकता कि सभी बच्चे इस तरह का व्यवहार करते है लेकिन जो भी लोग करते है वह आने वाली पीढ़ी के लिए भी सही नही कर रहे है और ऐसे लोगों को एक उत्तराधिकारी का फ़र्ज पूरे दायित्व के साथ निभाना चाहिए।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा।

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