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असम में धर्म के ठेकेदारों ने एक 16 वर्षीय युवा गायिका को 46 फतवे जारी कर अपनी गंदी मानसिकता का परिचय दे ही दिया,जो समाज के लिये सही नही है, आखिर धर्म के ये ठेकेदार इस गायिका के गायन को रोक कर क्या साबित करना चाहते है? अजीब बात है कि जहां दुनिया के लोग तेजी से विकास की तरफ अग्रसर है वहीं ये कट्टरपंथी अभी भी पुराने समय में जीवन व्यतीत कर रहे है,मुस्लिम महिलाओं के द्वारा गायन के क्षेत्र में यह कोई अनोखा मामला नहीं है इसके पहले भी कई मुस्लिम महिलाएं गायिकी के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी है जिनमें प्रमुख रूप से नूरजहाँ ,शमशाद बेगम है, ताज्जुब तो ये है कि उस समय ये कट्टरपंथी कहां थे? तब इनके खिलाफ फतवा क्यों नहीं जारी किये गए? इन कट्टरपंथियो को हर हालत में ये तो सोचना ही चाहिए कि अल्लाह हर गुण सबको नहीं देता, कुछ ही लोग होते है जिनको अल्लाह फुर्सत में बनाते है और उनके अंदर अनोखे गुणों का सृजन करते है। अब जब नाहिद आफरीन को गायिकी के जैसा गुण प्राप्त है तो इस बच्ची को प्रोत्साहन देना चाहिए न कि उसके खिलाफ फतवा। इन धर्म के ठेकेदारों को इतना तो पता होना चाहिए कि अल्लाह के द्वारा दिए गए स्वर को फतवा जारी कर के उसके गायन को रोक तो सकते है लेकिन ये अपने फतवे से किसी भी महिला को चाह कर भी स्वर नहीं दे सकते,लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य कहे या अल्लाह के इन कथित रहनुमाओं की कुंठित मानसिकता, कारण जो भी हो लेकिन जब आज महिलाएं पुरूषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है तब पुरूषों के द्वारा ऐसा बंधन सही नहीं है। आश्चर्य तो तब होता है जब देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी मांगने वाले तो बहुत लोग दिख जाते है परन्तु नाहिद आफरीन के मामले में कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह रहा है कि नाहिद आफरीन की आजादी को दबाया जा रहा है। अगर कट्टरपंथी ऐसा करने में सफल रहे तो इन कट्टरपंथियो का मनोबल ऊंचा हो जायेगा जब कि एक उभरती कला का दफन हो जायेगा।इसलिए आज सभी लोगों को इस उभरती गायिका का साथ देकर उसके कला को निखरने का पर्याप्त समय देना चाहिए,जिससे कि आने वाले समय में भी ये कट्टरपंथी किसी को फतवा जारी न कर सके। उस तरह से ये फतवा का चलन ठीक नहीं है,इसको समाज से ही हटा देना चाहिए जिससे कि कितने परिवार उजड़ जाते है,कितने बिखर जाते है। इसलिए फतवा शब्द ही खराब है जिसका दुरुपयोग हो रहा है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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