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राजनेताओं के दोहरे मापदंड

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ईवीएम अर्थात इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को भारत में ही नहीं भारत के बाहर के कुछ देशों में भी चुनाव के लिए प्रयोग किया जाता है,इस हिसाब से ईवीएम को चुनाव कराने का गौरव पिछले एक दशक से मिला हुआ है,लेकिन इन दस वर्षो में कभी भी किसी पार्टी को किसी भी प्रकार का ऐतराज नहीं था,और न ही इस पर कोई सवाल खड़े किये गए,इसका कारण ये रहा कि इन पार्टियों को कुछ न कुछ सीटे मिलती रहती थी,इसलिए किसी को कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। परन्तु आज जिस प्रकार से भाजपा को छोड़ बाक़ी पार्टियों का हाल हो रहा है यह इन पार्टियों के लिए बहुत बड़ा झटका है।इनमें से कुछ पार्टियों का तो बिल्कुल सफाया हो जा रहा है यह इन पार्टियों के लिए एक ज़बरदस्त शाक की तरह है जिसको इन्हें पचा पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। इसमें भी बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का तो बहुत बुरा हाल है। इन दोनों पार्टियों को 2014 के लोकसभा में और 2017 के विधानसभा के चुनाव में मिली करारी पराजय के बाद ईवीएम पर ही इन दलों के नेता अंगुली उठानी शुरू कर दिये,और इस मशीन की गुणवत्ता पर ही सवाल खड़े कर दिए। मायावती, अखिलेश के बाद अब राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल भी ईवीएम पर सवाल खड़े करने लगे है। ये वही अरविंद केजरीवाल है जिनको इसी ईवीएम की बदौलत मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली और जिनको 70 सीटो में 67 सीटे प्राप्त हुई थी। तब किसी को कोई दिक्कत नहीं थी।लेकिन आज इसी ईवीएम पर सवालिया निशान छोड़ कुछ दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए है। आज अरविंद केजरीवाल और अजय माकन ने यहां तक कहा कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव वैलेट पेपर से ही कराये जाय।लेकिन चुनाव आयोग ने इससे इंकार कर ईवीएम के द्वारा ही चुनाव कराने का फैसला किया है।आज कांग्रेस को भी ईवीएम में खोट नजर आ रही है जबकि इसी चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। लेकिन राजनीति करने के लिए राजनेता सब कुछ छोड़ ईवीएम की इस विधि पर ही अंगुली उठाना शुरू कर दिए है जो सही नही है अगर अंगुली उठानी ही है तो हर ईवीएम परिणाम पर अंगुली उठानी चाहिए जो तथा सभी दल को मिलकर चुनाव आयोग मे शिकायत दर्ज करानी चाहिए और इस पर एक आम राय बनाना चाहिये जो सर्व मान्य हो। इस तरह बीच में किसी के ऊपर उंगली उठाने का तात्पर्य यह है कि उस पर विश्वास न करना। आज चुनाव आयोग जब निष्पक्षता से चुनाव करा रहा है तो इस पर किस बात की अंगुली। किसी भी पार्टी को हराना या जिताना चुनाव आयोग के वश की बात नहीं होती क्योंकि चुनाव आयोग के ऊपर किसी भी प्रकार का कोई दबाव नही होता।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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