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सबसे आगे हिन्दुस्तानी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम की शपथ के बाद ही इस बात का भी शपथ लिया था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा,इस शपथ के बाद भी भारत का भ्रष्टाचार में नंबर एक पर पहुँचना,पीएम के वादे को चुनौती देता है। ये इस ओर भी संकेत करता है कि अभी भी भारत के लोग खाने में मस्त है, और उनको पीएम का कोई परवाह नहीं है। जिस प्रकार से वैश्विक संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और घूसखोरी जैसे मामलों पर किये अध्ययन में भारत को पहले स्थान पर खड़ा किया है,ये इसी बात के संकेत दे रहे है। अगर किसी भी क्षेत्र में भारत का अच्छे कामों के लिए नाम लिया जाता है तो यह हमारे लिए गर्व की बात होती है लेकिन भ्रष्टाचार के मामलों में पहले पायदान पर होना ठीक नही है और यह देशहित में भी अच्छी बात नहीं है। अगर हम करप्शन बैरोमीटर की बात करें तो उसके अनुसार 69 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने किसी न किसी प्रकार से अपने काम के लिए घूस दिया है क्योंकि आज वास्तविक रूप में देखा जाय तो तो बिना घूस दिए कोई काम होने वाला भी नहीं है ,इसलिए घूस देना भी मनुष्य की मजबूरी बनती जा रही है। घूस लेने के लिए भी कई तरीको का प्रयोग किया जाता है जिसमें कुछ लोग तो प्रत्यक्ष रूप से घूस स्वीकार करते है तो कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप में घूस स्वीकार करते है। इन प्रत्यक्ष और अप्रयक्ष दोनों रूपों से भ्रष्टाचार का खेल खेला जाता है। जनता की मजबूरी ये रहती है कि अगर काम करवाना है तो सुविधा-शुल्क देना ही पड़ेगा,जबकि घूस लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध है उसके बाद भी लोग भ्रष्टाचार से पीछे नहीं हट रहे है। अब अगर कोई फाइल अटकी पड़ी है तो कोई भी ये सोचता है कि रुपये देकर जल्दी काम करा लिया जाय ,इस चक्कर में लोग घूस को बढ़ावा भी दे रहे है। घूस देकर काम करवाना सभी के लिए सुगम लगता है,सुगम इसलिए कि काम कराने की अवधि भी कम हो जाती है और मनुष्य भाग-दौड़ से भी बच जाता है,आज के समय में मनुष्य के पास समय का अभाव है कोई भी नही चाहता कि एक काम चार दिन में हो,इसी को ध्यान में रखकर ही लोग सुविधा-शुल्क देने को तैयार हो जाते है। अगर कोई सरकारी मुलाजिम चार बार में दौड़ाने के बाद काम करता है तो अगर हम 100 रुपये ही यात्रा खर्च रखे तो इस हिसाब से चार दिन का चार सौ रुपये हो जाते है और अगर पहली बार जाने के बाद कोई बाबू को 200 रुपये लेकर काम कर देता है तो ये सस्ता पड़ जायेगा ,इस प्रकार से लोगों को आसानी हो जाती है भ्रष्टाचार करना। अगर सरकारी मुलाजिम लोग हाथ के हाथ काम निपटा दे तो फिर कोई पैसे की बात ही नहीं करता,लेकिन समस्या सबसे बड़ी यह है कि कोई भी सरकारी मुलाज़िम वेतन पाने के बाद भी खुश नही है और उसकी पैसे की भूख खत्म नहीं होती है। जिसके कारण ही देश में भ्रष्टाचार की मात्रा में काफी इजाफा होता जा रहा है जिसको रोकने के लिए कड़े कानून बनाने पड़ेंगे तभी इसको रोका जा सकता है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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