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नेताओं की राजनीतिक यात्रा

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हमारे देश मे हर नेता इस समय बगुले की तरह समय की ताक मे रहते है,कि कब कोई घटना देश मे घटित हो और हम राजनीतिक यात्रा पर निकले , उसमे भी अगर यह घटना अल्पसंख्यक वर्ग या दलित वर्ग से है तो फिर सोने पर सुहागा। अल्पसंख्यक वर्ग मे अगर घटना मुस्लिम वर्ग से है,तो और जल्दी राजनीतिक यात्रा हो जायेगी,लेकिन वही पर अगर किसी और धर्म से या हिन्दू धर्म मे ही दलित को छोड़ कर कोई दूसरी जाति का हो तो उस मामले मे हमारे राजनेता यात्रा नही कर सकते। अभी जल्द मे कश्मीर के अन्दर जो भी हो रहा है उस मामले मे कोई राजनेता उधर नही देख रहा है। यह दोहरा मापदण्ड किसके द्वारा अपनाया जा रहा है । हमारे राजनेता अगर किसी मामले को लेकर गम्भीर नही हो सकते तो उनको घी डालने का अधिकार कौन दिया है। केवल वोट की राजनीति के लिए समाज को तोड़ने का काम नही करना चाहिये। हमारे राजनेता लोग अगर सबसे ज्यादा किसी धर्म पर मेहरबान है तो वह मुस्लिम वर्ग । इस वर्ग मे गलती से कोई घटना हो गयी तो राजनेता तिल से ताड़ बनाने में बिल्कुल देरी नहीं करते। लेकिन यही अगर हिंदू वर्ग में हो उसमें भी अगर सामान्य वर्ग से है तो कोई पूछने वाला नहीं है। यही नही अगर देश की सेना का कोई जवान शहीद होता है तो उसके घर पर कोई जाता तक नही। उसके परिवार से कोई दुख-दर्द बांटता तक नही। यहां तक कि उस वीर सैनिक की अंतिम यात्रा में भी कोई नहीं जाता। इतना तो राजनेताओ को सोचना चाहिए कि कम से कम उसके दरवाजे पर ज़रूर जाये जो देश के लिए बलिदान हो गया। लेकिन देश का यही दुर्भाग्य है कि इस देश के राजनेताओं के अंदर इतनी संवेदना होनी चाहिए कि अगर कोई भी सैनिक राष्ट्र के लिए अपना सब खुशी देश को समर्पित कर रहा है तो कम से कम हम दरवाजे तक तो जाय। लेकिन वोट का एक ऐसा जाल बन गया है जिससे राजनेता लोग निकल नही पा रहे है। आज के समय की राजनीति को समझना भी बहुत कठिन है क्योंकि आज की राजनीति देश के लिए नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए होती है। राजनीति का अब सिर्फ एक मकसद होता है और वह है वोट बटोरना और किसी भी प्रकार से कुर्सी हथियाना जब की राजनेताओं को हमेशा राष्ट्र को पहले रखना चाहिए उसके बाद ही वोट होता है लेकिन आज के समय में राष्ट्र पीछे और वोट की सवारी सबसे पहले करते है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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