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विद्यालय को हम शिक्षा का मंदिर भी कहते है क्योंकि इसके अंदर हम ज्ञानार्जन के लिए ही जाते है, जिस प्रकार से लोग मंदिर में जाकर भगवान की भक्ति में ध्यान लगाते है और अपने जीवन को सफल बनाते है,उसी प्रकार से छात्र इस शिक्षा के मंदिर में जाकर अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते है। आज इस शिक्षा के मंदिर में ज्ञान लेने वालों की कोई कमी नही है,मगर ज्ञान देने वालो की जरूर कमी होती है,इस कमी के अलावा भी यहां व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं होता,प्राइवेट स्कूलों में तो हालात ठीक होते है परन्तु अगर हम सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को देखे तो हमको यही लगेगा कि जैसे इनका कोई भी प्रबंधक है ही नही,ऐसा सरकारी स्कूलों के साथ ही होता है कि उनके पास बच्चों के बैठने तक व्यवस्था नही होती है और वह जूट की बनी टाट पर बैठने को मजबूर है,अब अगर बच्चों के बैठने की ऐसी व्यवस्था रहेगी तो बच्चे कैसे पढेंगे,कैसे लिखेगे,सरकारी स्कूलों में फिलहाल बैठने की ही समस्या नही होती है उनको खेलने-कूदने का भी कोई इंतजाम भी नही होता। अगर बच्चों को प्यास भी लग गयी तो उनको न तो शुद्ध पानी की सप्लाई होती है और नही पीने की कोई बैकल्पिक व्यवस्था। स्कूल परिसर में अगर गलती से कोई भी नल लग गया तो वह जब तक चल गया तब तक ठीक नही तो बिगड़ने के बाद फिर राम भरोसे,उसका कोई वाशर भी बदलने वाला नही , सरकारी स्कूलों का जो सबसे बड़ी कमी होती है वह है स्कूल प्रबंधन। स्कूल में पहुँचने के बाद अगर देखा जाय तो कोई ये नही बता सकता कि कक्षा चल रहा है या फिर भोजनावकाश चल रहा है। जितने भी बच्चें होते है उसमें से आधे घूमते ही मिलते है, देखने से यही प्रतीत होता है कि यह बच्चों का लंच समय चल रहा है। अब इसका कारण देखा जाय तो इसमें बच्चों का कोई दोष नहीं दिखता क्योंकि जब उनके कक्षा खाली चलेगे तो बच्चे क्या करेंगे,घूमेंगे ही।। स्कूलों के अंदर अगर देखा जाय तो आज के समय में बहुत से स्कूलों में अध्यापकों की भारी कमी है,जो है भी उनके ऊपर काफी भार पड़ता है,उन अध्यापकों को अतिरिक्त कक्षायें लेनी पड़ती है। अब यहां पर एक सवाल जरूर आता है कि जब अध्यापकों की संख्या कम है तो फिर नियुक्ति क्यों नही की जाती है। क्यों विद्यालय इतनी कमियों के बावज़ूद भी आवाज़ नही उठाता,कम संख्या बल लेकर भी पढ़ाई जारी रखता है,आज के समय में भी बहुत से स्कूलों में भी बिजली तक नही है ,अब अगर बिजली नही है तो गर्मी के मौसम में बच्चे पढ़ाई कैसे करेंगे क्योकि अप्रैल और मई के महिनों में बिन बिजली के बच्चों का बैठ कर पढ़ना बहुत ही कठिन काम है इस प्रकार से उमस भरी गर्मी में वास्तव में पढ़ाई करने का काम बहुत ही कठिन हो जाता है। लेकिन उसके बावज़ूद भी बच्चे पढ़ते है। अब करें तो क्या करें। लेकिन अब सवाल ये है कि सरकारों का ध्यान शिक्षा की इन मूलभूत सुबिधाओं के तरफ क्यों नही जाता ,जहां से हमारे देश के भावी कर्णधार निकलने वाले होते है।। **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा *****************************************
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