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संसद की महत्ता पर आँच

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भारत में लोक सभा और राज्य सभा के माध्यम से देश की आर्थिक नीतियां,बिल संशोधन, धाराओं में बदलाव आदि कई प्रकार के काम निपटाने के लिए दोनों सदनों का उपयोग किया जाता है,लेकिन आज के जो हालात संसद भवन के है ये उसकी महत्ता पर ही सवाल उठा देते है,क्योकि जिस उद्देश्य से इस संसद की रचना हुई शायद अगर इसको बनाने वाले को ये पता होता कि यहां पर केवल हो-हल्ला ही किया जायेगा,बाक़ी कोई काम नही किया जायेगा तो वह शायद संसद भवन की रचना ही नहीं करता और अगर करता भी तो किसी और ढाँचे के रूप में,उसको संसद भवन न बनाता,संसद को बनाने में न जाने कितने रुपये देश के लगे होंगे , इस उद्देश्य से कि यहां पर देश के राजनेता लोग बैठ कर देश के विकास पर कुछ चर्चा करेंगे और देश को आगे ले जाने के बारें में सोचेंगे , लेकिन धन्य है भारत के इस समय के राजनेता जो धरना-प्रदर्शन करके पूरा संसद का समय ही बर्बाद कर देते है, जबकि संसद की कार्यवाही पर करोड़ो रुपये का खर्चा आता है फिर भी हमारे सांसदगण को किसी भी प्रकार की कोई परवाह नही रहती क्योकि दोनों सदनों को चलाने में जो भी खर्चा आता है वो किसी भी पार्टी का पैसा नही होता,ये पैसा होता है भारत की जनता का,सबसे बड़ी बात ये है कि अगर दोनो सदनों मे हो-हल्ला,जिंदाबाद-मुर्दाबाद ही करना है तो ये लोग जंतर-मंतर पर जाकर क्यो नही करते,अब धरना भी देने के लिए राजनेताओ को वातानुकूलित कक्ष चाहिये,और इतना करने के बाद भी इन सांसदों को बढ़िया क़िस्म का भोजन किस बात का दिया जाता है इनका कर्म तो नीबू -पानी का भी नही बनता। यह वही जनता है जिसको भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय किसान के संबोधन से संबोधित किया था। अब सवाल ये है कि क्या लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता और आज के नेता में वैचारिक प्रदूषण की मात्रा में कुछ ज्यादा ही बढ़ाव आ गया है? आज के समय में स्थिति ये है कि अगर संसद में पुराने नेता रहते तो ये सब देखकर कितना दुखी होते। वास्तव में आज के नेताओं को बिल्कुल ही शर्म नही रह गयी है कि संसद को हम क्यों बाधित कर रहे है,इन नेताओ की इतनी भी सोच नही रह गयी है कि ये सोचे की जिस काम के लिए जनता ने हमे चुनकर संसद भेजा है हम उस काम को क्यो नही करते,और केवल हो -हल्ला करते है। आज के समय में राजनीति को भी भ्रष्ट राजनीति में परिवर्तित कर दिया गया है,और अब घटिया स्तर की राजनीति होने लगी है। कम से कम राजनेताओं को इतना तो ज़रूर सोचना चाहिये कि संसद का जो महत्तव है उसको तो कलंकित न करे और उसकी मर्यादा को बनाएं रखे,क्योंकि अगर संसद है तभी सांसद बनते है,और सांसद इसलिए बनाते है कि जनता और देश का भला करे। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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