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अगर जिंदगी के सफर पर निर्बाध रूप से आगे बढ़ना है तो सबसे पहले हमें अपने जीवन की साइकिल के दोनों पहिए बिल्कुल मजबूत स्थिति में रखने होंगे तभी जिंदगी की रफ़्तार बनी रहेगी, अब अगर पहिए सही तरीके से काम नही करेगें तो जीवन पर संकट आ सकते है। इसी प्रकार से अगर साइकिल के दोनों पहिये है तो इसमें भी समस्या आना लाजिमी है, साइकिल के इन्ही दोनों पहियों की तुलना अगर हम पति-पत्नी से करें तो जिंदगी में ये दोनों पहिए भी बहुत जरूरी है। पति के बिना पत्नी और पत्नी के बिना पति दोनों अधूरे है,इनका अपने-अपने जगह पर काफी महत्व है लेकिन अगर हम पत्नी की बात करें तो पुरुष के लिए महिला का अहम् योगदान होता है और इसीलिए कहा भी जाता है कि एक पुरुष की सफलता में जरूर किसी न किसी महिला का हाथ होता है। जिस प्रकार से साइकिल के पहिये के दोनों तरफ नट से कसे होते है जिससे कि पहिये सुचारू रूप से चल सके, उसी प्रकार से एक पत्नी भी पुरुष की जिंदगी को दोनों तरफ से नट के रूप में कस कर रखती है,जिससे की पुरुष की जिंदगी भी सुचारू रूप से दौड़ती रहे ,इसी आशा के साथ एक पत्नी अपने पति के साथ छाया बनकर रहती है जिससे कि पुरुष अपने जिंदगी की रफ़्तार पर नि:सन्देह दौड़ सके। एक पत्नी हमेशा पुरुष को कदम-कदम पर टोकती है और अच्छे- बुरे का ज्ञान समय-समय पर कराती रहती है,ये हर पत्नी की अपनी ज़िम्मेदारी भी होती है और वह अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी समझती भी है। लेकिन अगर हम पति के प्रकार की बात करें तो ये तीन प्रकार के होने के कारण अपने ज़िम्मेदारी से भटक जाते है। पति के तीन प्रकार होते है तो उनको बताना भी जरूरी है जिसमें से पहला होता है- (1) अनुगामी पति (2) सहगामी और (3) प्रतिगामी ************ (1) अनुगामी पति : जहां तक अनुगामी पति की बात करें तो इस प्रकार के पति वे होते है जो अपने पत्नी की इच्छानुसार ही आगे बढ़ते है। जो भी पत्नी सलाह देती है पति उसी रास्ते का पालन करता है। कहने को मतलब ये है कि पति अपने पत्नी के हां में हां करता रहता है अब चाहे पत्नी अच्छा कहे या खराब,सुनी पत्नी की ही जाती है।******************************।(2)सहगामी पति: सहगामी पति की विशेषता यह होती है कि ये अपनी और अपनी पत्नी की राय को एक मिलाकर ही काम करते है। पति और पत्नी की आपसी सहमति होती है या होने के बाद ही आगे की कार्यवाही की जाती है। ये दोनों लोग राय मिलाकर चलते है इसमें दोनों का आपसी सामंजस्य होता है। दोनों कदम से कदम मिलाकर चलते है।*******************-(3) प्रतिगामी पति : प्रतिगामी पति की विशेषता यह होती है कि ये पत्नी के राय के बिपरीत चलते है और उनकी राय पत्नी से बिल्कुल मेल नही खाती। कहने का तात्पर्य ये है कि पति और पत्नी की राय में छत्तीस का आंकड़ा होता है,एक दूसरे के विपरीत चलने वाले होते है। कुल मिलाकर ये है कि पति ,पत्नी के बिल्कुल उल्टा काम करते है। आज के समय में और पहले के समय में पत्नी का अहम रोल रहा है, ये पति के हर दुखों मे हमेशा साथ रही है। सावित्री भी पत्नी ही थी जो यमराज के मुहं से अपने पति सत्यवान को यमराज से छीन कर लाई थी। वह भी एक पतिब्रता पत्नी ही थी। एक पुरुष को अगर देखा जाय तो उसको ऊपर उठाने और नीचे गिराने में एक पत्नी का अहम् रोल होता है। एक स्त्री किसी भी परिवार को बसाने में अपना अहम् योगदान देती है लेकिन ये तब होता है जब पति भी पत्नी के विचारों से मेल खाता हो,एक पत्नी हो चाहे दूसरे रिश्ते की स्त्री सभी में घर बसाने और उजाड़ने की क्षमता होती है। एक स्त्री को मार्केटिंग में डिग्री न भी रहे तब भी वह इस क्षेत्र में निपुण होती है पति या पुरुष की तुलना में,एक-एक रुपये दुकानदारों को कम देकर वह अपने राजस्व की बृद्धि में बिल्कुल निपुण होती है। पति के बुरे समय में इन कटौती के पैसे को निकाल कर रिजर्व बैंक की तरह काम करती है।अगर किसी को बचत के बारे में ज्ञान लेना हो तो वह इन महिलाओं से सीख सकता है,क्योंकि इनके अंदर बचत की गजब की कला होती है। एक सच्ची पत्नी अगर है तो वह पति के आय के हिसाब से ही कदम मिलाकर चलने की क्षमता रखती है,इनके अंदर सन्तोष की कोई कमी नही होती है और वह बिन खाये भी सोने का जज्बा रखती है। इन्ही सब कारणों से एक स्त्री को लक्ष्मी तक की संज्ञा से नवाजा जाता है। ये तो सही है कि एक पति के लिए एक पत्नी की कितनी अहमियत होती है।। *****************************************इसी लिए कहा भी जाता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता : अर्थात जहां पर एक नारी की पूजा होती है वहां देवता का निवास होता है। **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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