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देश की समस्या हो या अपने घर की ,अगर अपने ही लोग दांवपेंच खेलने लगे तो फिर समस्या आना स्वाभाविक है, आज देश में यही समस्या बैंक के कुछ अधिकारी और कर्मचारियों के दांवपेंच से होने लगी है , 500 और 1000 के नोट बंदी के बाद उपजे आर्थिक संकट से जूझते देश में लोग अपना फायदा उठाने में लगे पड़े है,वास्तविक रूप से देखा जाय तो आज जो मुद्रा का संकट देश के लोग झेल रहे है,ये तो होना ही था, क्योंकि रुपये की मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं हो पा रही है। जिस रुपये की मार्केट में 86 प्रतिशत हिस्सेदारी हो और उस को बाजार से अचानक हटा लेना समस्या का निमंत्रण है लेकिन बैंक के लोग आधा से ज्यादा दिक्कत खुद पैदा कर रहे है। बैंकों की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में है क्योंकि बैंक मैनेजर या बैंक कर्मचारी जो भी पैसे आ रहे है उनको भाई-भतीजावाद में या फिर कमीशन पर कालेधन को सफेदीकरण की कार्यवाही में खत्म हो जा रहे है, अगर जितना भी रुपया आ रहा है सभी को थोड़े-थोड़े बांटे जाय तो बैंक में भीड़ नही लगेगी लेकिन देश की समस्या यही है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने में भ्रष्टाचार हो रहा है। अब सवाल ये है कि क्या देश से भ्रष्टाचार खत्म होगा या फिर भ्रष्टाचारी लोगों का खेल चलता रहेगा ,हमारे प्रशासन की मजबूरी ये है कि अगर कोई भी नियम कानून बनाये जाते है तो सभी लोग पालन नही करते,जबकि सभी के पालन करने से ही नियम का पालन होता है क्योंकि जब तक किसी मुहिम को सबका समर्थन नही मिलता तब तक किसी भी योजना में सफलता मिलना मुश्किल होता है। यहां पर यही हाल है कि यदि चमड़े के घेरे को कुत्ते को रखवाली दे दी जाय तो फिर क्या होगा,कुत्ता अपने स्वभाव के अनुसार वह चमड़े को सुरक्षित नही रख सकता । उसी प्रकार से बैंक के कुछ कर्मचारियों के वजह से पैसे की समस्या पर काबू नही पाया जा रहा है, और इसमें जो ईमानदार लोग है भी वह भी बदनाम होते जा रहे है। जहां पर लोग आठ-दस हजार रुपये के लिए लाइन में दिन भर लगे रहते है वही पर कुछ लोगो के पास से करोड़ो रुपये की खेप कहां से आ रही है,अब यह बैंक की घोर लापरवाही कहा जाय या भ्रष्टाचार की कहानी। इस नकदी के संकट में बैंक के कुछ अधिकारी और कर्मचारी भी बहती गंगा में हाथ धोने में लगे पड़े है,न जाने कितने कालेधन को सफेद करने में लगे पड़े है। समय सबका बदलता है इस कड़ी में बैंक का भी समय बदल रहा है,यहां भी लोग अपनी कमाई बढ़ाने में लगे पड़े है,कुछ बैंक कर्मी की भ्रष्टाचारी नीति के कारण समस्या दिनों दिन खराब ही हो रही है क्योकि लाइनों के आकार में बिल्कुल भी कमी नहीं आ रही है और इस लाइन को छोटा करने के लिए बैंक को उचित कदम उठाना पड़ेगा।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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