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दर्द से परिपूर्ण जिंदगी

Indian
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दर्द एक ऐसा शब्द है जो हर इंसान को अपने जीवन में कभी न कभी,किसी न किसी रूप में ज़रूर झेलना पड़ता है, विशेषकर जन्म और मृत्यु के समय तो प्रकृति के द्वारा प्रदत्त उपहार के रूप में मिला है जो हर मनुष्य के लिए अनिवार्य है। मनुष्य जब एक बालक के रूप में इस धरा पर अपना प्रथम पग रखता है तो वही से कष्ट की शुरुआत शुरू हो जाती है। इसी कड़ी में तो कुछ बच्चे सीधे आईसीयू से ही अपने जीवन का आरम्भ करते है। इसी तरह से जब एक बालक बड़ा होता है तो उसको भी कुछ न कुछ दर्द के चक्र से गुजरना ही पड़ता है फिर बृद्धावस्था का दर्द शुरू हो जाता है,बुढ़ापा भी मनुष्य के जीवन का एक बहुत ही कष्टदायक क्षण होता है और उसके बाद मृत्यु और भी पीड़ादायक होती है,फिर भी मनुष्य अपने अटल रास्ते से बिल्कुल डगमगाता नही और वह निश्चिंत भाव से अपने दृढ़ पथ पर खड़ा रहता है। कहने का मतलब ये है कि मनुष्य को अपने पूरी जिंदगी में दर्द एक छाया की तरह होती है जो हमेशा साथ-साथ चलता है इसी प्रकार से मनुष्य के जीवन का अधिकांशत:समय लाइन लगाने में बीत जाते है। समय -समय पर किसी न किसी क्षेत्र में लोग लाइन लगा कर भी दर्द को झेलते है फिर भी लोग प्रसन्न रहते है जैसा कि इस समय लोग नोट बंदी से उपजे समस्या को लेकर लाइन दर लाइन लगे पड़े है। ये लाइन ये नही है की इस नोट बंदी ने सबको लाइन मे लगाया है,इसके पहले भी हर जगह लाइन को आप देख सकते है जैसे कि रेलवे में टिकट के लिए,अस्पतालों मे दवा के लिए,मन्दिरों में भगवान के दर्शन के लिए,बिजली के बिल को जमा करने के लिए,सिनेमा देखने के लिए टिकट की लाइन उसको देखने के लिए लाइन,बस स्टेशनों पर शौचालय में लाइन। जहां देखो वही लाइन। लाइन पर लाइन। अब इस समय देश के अंदर नोट बंदी के कारण बैंक के अंदर लाइन पर लाइन लगती जा रही है,लाइन अभी तो सिर्फ 20 दिन लगाते हुए है लेकिन यह पता नही है कि ये लाइन कब तक चलती रहेगी क्योंकि अभी भी बैंक में बढ़ती भीड़ कम होने का नाम नही ले रहा है। ये भी एक मानव जीवन का एक प्रकार से दर्द स्वरूप है जो सभी लोग झेल रहे है या झेलने के लिए मजबूर हो रहे है। इस प्रकार से मनुष्य का जीवन बहुत ही ज़्यादा दर्द से भरा होता है,बस अंतर ये होता है कि कोई मनुष्य कम और कोई मनुष्य ज्यादा दर्द झेलता है ये भी किस्मत का एक खेल होता है जो मनुष्य को प्रकृति से उपहार स्वरूप मिलता है। हर मनुष्य इसी कारण से झेलने के लिए तैयार भी रहता है,क्योंकि सुख और दुख दोनों ही एक तरह से मनुष्य की जिंदगी के अनिवार्य पहलू है जिसको प्रत्येक मनुष्य को झेलना ही है। इसलिए जिंदगी के दर्द को खुश होकर झेलना चाहिए,न कि दुखी होकर । **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा

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