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प्रदूषण किसी भी प्रकार का हो यह हमारे सेहत के लिए ख़तरनाक ही होता है। इसके शरीर में या समाज में रहने से पूरे मानव समाज का भला नही होने वाला,यह एक तरह से मानव सृष्टि के लिये सही नही है। प्रदूषण भी कई प्रकार से समाज के बीच अपने स्तर का समय-समय पर अहसास कराता रहता है,जिसमें मुख्यतः वैचारिक प्रदूषण,शारीरिक प्रदूषण,और मानसिक प्रदूषण समाज के वातावरण को खराब कर देते है। इस प्रकार के प्रदूषण के वजह से बहुत से परिवारों के लिए आसान नही होता इससे उबरना,इससे न जाने कितने परिवार विघटन के तरफ चले जाते है। मानसिक, वैचारिक और शारीरिक प्रदूषण से भी खराब होता है वायु और ध्वनि प्रदूषण । इन दोनों प्रदूषणों का नमूना दीपावली के समय ही देखने को मिल सकता है,क्योंकि दीप पर्व पर जितने भारी पैमाने पर पटाखों को फोड़ने का प्रदर्शन किया जाता है,यह ध्वनि और वायु को खतरनाक जोन मे पहुँचा देता है। अब जिस प्रकार का प्रदूषण इस समय दिल्ली सहित पूरे देश में फैल रहा है। इससे तो यही लगता है कि प्रदूषण का आपातकाल शुरू हो चुका है। इस समय प्रदूषण का जो स्तर दिल्ली के अंदर चल रहा है उससे तो यही लगता है कि मानव समाज के लिए यह प्रदूषण अभिशाप साबित हो रहा है।अब सवाल हमारे सामने ये है कि क्या आने वाला कल हमारे भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहेगा ? ————————————–अब चाहे प्रशासन हो या जनता , सभी को मिलकर इस महामारी को खत्म करना होगा, नही तो ये प्रदूषण हमको ही खत्म कर देगा। अभी सभी लोगों को यह मामला बहुत आसान लग रहा है, जबकि यह मामला बहुत ही गम्भीर है,कारण ये है कि यह जनहित का मामला है और इससे हमारा पूरा मानव समाज जुड़ा है,इसलिए हमारा पहला कर्तब्य बनता है कि हम इस प्रदूषण को रोके। लेकिन दुख इस बात का है कि हमारे देश का सिस्टम और हम भारतवासी सुधरने का नाम नही ले रहे है। जिस प्रकार से कई क्षेत्रों में धान की फ़सल को काटने के बाद उसके अवशेष को खेतों मे जला दिया जाता है,ये काम पर्यावरण के हिसाब से बिल्कुल सही नही है।अब उसको अगर किसान लोग न जलाएं तो इतना दिक्कत न आएं, लेकिन सबको पराली को जलाने में इतना आराम दिखता है कि लोग खेत में बड़े आराम से माचिस की तीली मार कर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते है। लेकिन यही सोच अगर रही तो मनुष्य जाति के लिए घातक भी बन सकता है।दूसरा कारण बन रहे है भीषण आतिशबाज़ी जिसका नजारा दीपावली के समय में देखने को मिल जाता है। जो ध्वनि और वायु दोनों को पूर्ण रूप से प्रदूषित कर देता है,इसमें भी लोग न जाने कितने तीब्र के पटाखें छोड़ते है जिससे कि अगर कमजोर मरीज है तो उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है,और कभी-कभी कुछ मरीज तो मानसिक संतुलन हो खो देते है। लेकिन आतिशबाजी करने वालों को इससे कोई मतलब नही होता,उनको अगर मतलब है तो अपने पटाखों को छोड़ने से। लेकिन यह सोच भी हमकों बदलनी पड़ेगी। अब समय आ गया है जागने का,क्योंकि प्रशासन के साथ अगर हम भी सोते रहे तो फिर यही सोना भारी पड़ जायेगा, प्रदूषण ये नही है कि ये हमारे लिये ही खतरनाक है,यह तो ऐसा रोग है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकता है।इसलिए अपने आने वाली पीढियों को अगर सुरक्षित रखना है तो इस लाइलाज होती बीमारी का उचित इलाज करना ही पड़ेगा। लेकिन यह तभी सम्भव है कि जब इसके लिए सभी की सोच पॉजिटिव हो। इसलिए प्रदूषण के प्रति सरकारों के साथ-साथ जनता का भी फर्ज बनता है वह अपने-अपने स्तर पर उचित काम करें,अगर भविष्य को सुरक्षित रखना है तब, नहीं तो कोई ज़रूरत नही है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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