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पक्षियों से सीखने की ज़रूरत

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इस संसार मे कई प्रकार के जीव पाये जाते है,जिसमे से कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के होते है तो कुछ आध्यात्मिक प्रवृत्ति के। आपराधिक किस्म के जो होते है वह अपने समाज मे किसी को भी आराम से जीने नही देते,वह नही चाहते की इस सांसारिक जीवन मे लोग आराम से रहे। उनकी प्रवृत्ति ही मारधाड़ वाली होती है, उनको रोते हुए लोग अच्छे लगते है। वे यहां तक हिंसक रूप ले लेते है कि अपने ( सबसे प्रिय ) को भी नही छोड़ते। इसी के उलट जिनकी प्रवृत्ति आध्यात्मिक है वे अपने तो चैन से जीते ही है और दूसरो को भी चैन से जीने देते है।आज के समय में तो आपराधिक प्रवृति के लोग ऐसा ब्यवहार कर रहे है कि ऐसा तो पक्षी भी नही करता जैसा कि यह लोग करते है। इसलिए यह जरूरी है की हम पक्षियों के द्वारा ही कुछ सीख लें। अगर हम पक्षियों के प्रेम की बात करें तो इनका सन्तान-प्रेम देखने लायक होता है। एक पक्षी जो न जाने कहाँ-कहाँ से एक-एक चारे को पकड़ कर अपनी चोंच में भरकर ले आता है और अपने बच्चों को कितने वात्सल्यता के साथ खिला देता है। यह उसका प्रेम ही होता है जो कि चोंच मे चारे को भर कर लाता है और बच्चों को खिलाने के बाद फिर नए चारे की तलाश मे उड़ जाता है। उस पक्षी की महानता कहे या उसका पुत्र मोह,या उसका धर्म ,वह अपने काम पर बिल्कुल डटा रहता है।लेकिन उसकी खुशी की कल्पना कोई और नही कर सकता,अगर खुशी का अनुभव करेगा तो वही पक्षी जो अपने बच्चें को भोजन खिला रहा होता है। अपने को खिलाने की खुशी वह पक्षी ही बता सकता है। एक पिता,एक पुत्र के लिये दुनिया की हर खुशी देने के लिये तैयार रहता है,चाहे उसकी स्थिति रहे या न रहे,लेकिन उसका जितना भी सामर्थ्य होता है वह अपने बच्चों को हर सम्भव देने की कोशिश करता है। लेकिन आज हमारे मनुष्य जीवन में कितने लोग होंगे जो इन पक्षियों की तरह भी काम नही करते अर्थात अपने को ही लोग जीवन नही दे पाते,उन लोगों को ही इन पक्षियों से सीखने की जरूरत है। मनुष्य के घर पैदा होने के बाद भी लोग पक्षियों की तरह पेश नही आते,बच्चे पैदा करने के बाद भी लोग देख-रेख नही करते और बच्चा दर-दर की ठोकरें खाता रहता है। कम से कम इतना तो मनुष्य को पक्षी से सीखना ही चाहिये। कितने लोग होते है जो केवल पिता का नाम दे देते है, लेकिन एक बच्चा पिता के सुख से बंचित रह जाता है। जबकि एक पिता की कितनी जिम्मेदारी होती है यह तो एक ज़िम्मेदार पिता ही बता सकता है। एक बच्चे को छोटे से उम्र से लेकर बड़े होने तक बड़े तक का कार्य करने मे पिता को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिये। क्योंकि अगर एक सन्तान के लिए उसका पिता ही कुछ नही करेगा तो फिर कौन करेगा।इसलिये हर माता-पिता को ये समझना चाहिए कि अगर मेरा बच्चा है तो उसके विकास के लिए सदैव कुछ न कुछ करेगा।। ********************************************************************************** नीरज कुमार पाठक नोएडा

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