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दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।।

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चलती चाकी देख के,दिया कबीरा रोय। दोउ पाटन के बीच में साबित बचा न कोय।। —————————————————–कबीर दास के इस दोहे का मतलब आज के समय में कितना सत्य है, इसको बताने के लिये दिल्ली सरकार और भारत सरकार के बीच मचे वाकयुद्ध के रूप मे देख सकते है,क्योंकि इन दोनों की आपसी लड़ाई में जनता का साबुत बचना मुश्किल ही लग रहा है। वह दिल्ली जिसको देश की राजधानी का गौरव प्राप्त है,लेकिन दिल्ली की ब्यवस्था देख कर नहीं लगता की ये वही दिल्ली है। आज के बदलते समय में परिवर्तन भी हो रहा है,जहां पहले लोग भगवान के भरोसे रहते थे,वहीं आज लोगों का ध्यान भगवान से हट कर कोर्ट के भरोसे चल रहा है। कोर्ट अब हर काम के लिये दिल्ली सरकार को लताड़ लगाता है। चाहे वह चिकनगुनिया का मामला हो,डेंगू का मामला हो या फिर बर्ड फ्लू का मामला हो। दिल्ली सरकार की आँखे तभी खुलती है जब कोर्ट डंडा लेकर दिल्ली सरकार के दरवाज़े पर खड़ा रहता है,तभी दिल्ली सरकार हरकत में आती है। आज दिल्ली प्रदूषण की समस्या झेल रहा है,वह प्रदूषण जो ख़तरनाक स्थिति में पहुँच गया है,लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने अहं में है,और जनता प्रदूषण से परेशान है। अब इस प्रदूषण पर भी दोनों सरकारें अपने-अपने कर्तब्य के मार्ग से भागने की कोशिश कर रही है। इनके इसी लापरवाही के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन दोनों सरकारों को लताड़ लगाया है,और चिंता भी जताया कि हम आने वाली पीढ़ी के लिये क्या छोड़ रहे है। अब सवाल ये खड़ा होता है कि इस बढ़ते प्रदूषण के लिए आखिरकार जिम्मेदार कौन है। **************************************** प्रदूषण के लिए अगर सच पूछा जाय तो इसके लिए किसान,आम जनता और प्रशासन सब जिम्मेदार है। प्रदूषण बढ़ाने के लिये सभी प्रकार से सबकी जिम्मेदारी बनती है। लेकिन प्रशासन की कुछ ज्यादा ही जिम्मेदारी बनती है क्योंकि प्रशासन के हाथ में सब कुछ होता है,वे जब चाहे जो चाहे नियम कानून बना सकता है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री तो अपनी ज़िम्मेदारी को छोड़ पड़ोसी राज्यों के ऊपर आरोप लगाने में समय गवां रहे है,केजरीवाल की दिक्कत ये है कि ये अपने काम पर कम ध्यान देते है जबकि दूसरे के काम को मन लगाकर करते है। इसका ताजा उदाहरण रिटायर्ड फ़ौजी राम किशन ग्रेवाल की आत्महत्या के मामलें के रूप में देख सकते है, जिसमें की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लगा कि घर बैठे बहुत बड़ा मुद्दा मिल गया हो,केजरीवाल सब काम छोड़ कर इस निरर्थक राजनीति में लग गए,और उस कायर ब्यक्ति को लगे हाथ एक करोड़ की घोषणा भी कर दी। केजरीवाल ऐसे गलत हाथों मे जनता का पैसा बाँट रहे है जैसे कि उनके पिताजी ने मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कर रक्खी हो। शहीदों को पैसा देना अच्छी बात है,लेकिन जब वह वास्तविक रूप से शहीद हुआ हो तब देना अच्छा लगता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतना ज्ञान नही है कि शहीद किसको कहते है।कोई भी सैनिक कभी भी कायरों की भाँति नही मरता और जब मरता तो मातृभूमि की रक्षा करते हुए मरता है,जो इस तरह से मृत्यु को प्राप्त होता है उसी को हम शहीद कहते है। इसलिए केजरीवाल बेमतलब की राजनीति में लगे पड़े है जब कि दिल्ली के लोग बढ़ते प्रदूषण से परेशान है। दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण के लिए सबसे पहले वहीं ज़िम्मेदार है,जो प्रदेश का मुखिया है। उसके बाद किसान है जो पराली जला कर प्रदूषण बढ़ाने में लगे है। इन किसानों में भी ख़ास कर प.उत्तर प्रदेश, हरियाणा ,पंजाब आदि प्रदेशों मे धान के तने(पुआल,पराली)को खेतों में अंधाधुंध जलाया जाता है,इस पर रोक लगनी चाहिये।रोक लगाने के सबसे पहले तो सरकार को इस मामलें पर सख़्त कानून बनाना चाहिए। वह कड़ा से कड़ा कानून हो जिसमें कि कोई भी पराली जलाता है तो कम से कम 50 हजार का जुर्माना और 5 साल जेल ।जिससे कि लोग पराली जलाने के बारे में एक बार जरूर सोचे। ऐसा भी नही है कि पराली जलाना आवश्यक है ,इसके लिए भी उपाय है कि इसको प्लेट वाले ट्रैक्टर के सहारे कटवा कर ,उसमें पानी घर कर छोड़ कर दे,और खेत में थोड़ा सा यूरिया का छिड़काव कर दे। उससे फायदा ये होगा कि जितनी जड़े होंगी सब खेतों में मिल जाएंगी। उसके बाद जुताई करने के बाद सब मिट्टी में मिल जायेगा। लेकिन इतना काम कोई करना नही चाहता और जलाना आसान समझता है।

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