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अगर ईश्वर ने मनुष्य के घर जन्म दिया है तो सभी लोगों की सोच भी अच्छी होनी चाहिए। लेकिन आज के समय में लोगों की सोच ऐसी घटिया स्तर की होती जा रही है कि वह एक प्रकार से इस मानवीय सृष्टि के लिए अपवाद साबित हो रहे है,और अगर अपवाद की बात करें तो इसमें कश्मीर के अलगाववादी पहले नम्बर पर गिने जाएंगे। क्योंकि ये अलगाववादी जम्मू और कश्मीर के अंदर जो राजनीति कर रहे है वो बहुत ही घिनौना है। भारत के पैसे पर पलने वाले ये अलगाववादी अपने को पाकिस्तान का बताते है। इनको अपने को भारत का कहने में शर्म महसूस होती है। खाना चाहिए भारत का ,गाड़ी चाहिए भारत का,सुविधा चाहिए भारत का ,बाढ़ मे जान बचाए भारत की सेना,लेकिन एहसान मानेंगे पाक का, गुणगान गाएंगे पाक का। आज कितने सालों से ये अलगाववादी भारत के खिलाफ रोटी सेंक रहे है,और जनता को गुमराह कर रहे है। अलगाववादियों की ये गन्दी सोच कहे या चालाकी ,ये अपने लड़को को तो पढ़ाई के लिए विदेश भेज देते है,जिससे कि वे निर्वाध रूप से शिक्षा ग्रहण करते रहे और कश्मीर में जो बच्चे पढ़ने वाले है उनको पढ़ने से रोका जा रहा है, बच्चों के स्कूलों को आग के हवाले किया जा रहा है। अब सबसे बढ़ा सवाल ये उठता है कि स्कूलों को निशाना बना के ये अलगाववादी किस बात का सबूत देना चाह रहे है। ये अलगाववादी स्कूलों को जला कर आखिर शिक्षा की कमर तोड़ने पर क्यों उतारू हो रहे है। विद्यालय को जलाने का मतलब तो यही है कि ये अलगाववादी शिक्षा की जड़ पर प्रहार कर रहे है क्योंकि स्कूल से ही शिक्षा का अर्जन शुरू होता है। और विद्यालय ही नही रहेंगे तो बच्चे पढ़ेंगे कहां। शायद अलगाववादियों की अलग होने की प्रवृति से इनका दिमाग भी काम करना बन्द कर दिया है। इनकी घटिया सोच यही है कि अगर विद्यालय को ही जला दिया जाय तो बच्चे किस जगह बैठ कर पढ़ाई करेंगे। अगर विद्यालय नही होगा तो क्या पढ़ाई नही हो सकती है। इन अलगाववादियों को शायद यह नही पता कि इसी धरती के लाल एकलब्य भी थे जो बिना गुरु और बिना गुरुकुल के महान धनुर्धर की विद्ववता हासिल किया था। अलगाववादियों का मुख्य लक्ष्य यही है कि न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी। इनकी इसी तरह की सोच है कि न स्कूल रहेगा और न बच्चे शिक्षित होंगे। जब बच्चे शिक्षित नही होंगे तो फिर उनको आतंकवादी बनाना आसान हो जायेगा,क्योंकि निरक्षर ब्यक्ति को आसानी से आतंक के क्षेत्र में भेजा जा सकता है। अगर ऊँचे दर्जे तक ब्यक्ति पढ़ा हो तो उसको आतंक के क्षेत्र में ले जाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा भी नही है कि आतंक के क्षेत्र मे सभी अनपढ़ लोग ही जाते है,इसमें औसत थोड़ा ज्यादा होता है। अनपढ़ों का ब्रेन वाश करना थोड़ा आसान जरूर होता है।इसी चक्कर में अलगाववादी लोग स्कूलों को जलाने का काम कर रहे है। देखने वाली बात ये है कि ये अलगाववादी अपने इस कारनामे में कितना सफल होते है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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