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ज़िन्दगी और टूटता धैर्य

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ईश्वर का मनुष्य को बनाने का मतलब यही था कि मनुष्य इस संसार का सबसे समझदार जीव होगा। एक मनुष्य की जिंदगी वास्तविक रूप से बहुत ही अच्छी जिंदगी होती है,क्योंकि हर तरफ से अगर देखा जाय तो मनुष्य के पास सबसे बढ़िया संसाधन भी होता है,जिसका वो जाने-अनजाने मे उपयोग करता है। ये भी सच है की सबकी जिंदगी की रफ़्तार एक जैसी नही होती है और क़िस्मत भी अलग हो सकती है। लेकिन जिंदगी अगर है तो दुख और सुख तो लगे रहते है। मनुष्य की जिंदगी में कई ऐसे क्षण भी आते है कि लोगों का धैर्य भी जबाब देने लगता है। लेकिन उसका ये मतलब नही लगाना चाहिए कि, जिंदगी को ही खत्म कर दिया जाय। आखिर जिंदगी को बिल्कुल खत्म कर देना भी किसी समस्या का हल नही होता। लेकिन आज के समय मे लोगों के अंदर धैर्य,सहनशीलता आदि की भारी कमी होती जा रही है। आज छोटी-छोटी बातों पर लोग आत्महत्या कर लेते है,क्योंकि उनका धैर्य टूट जाता है,और वे मौत को गले लगा लेते है। एक दार्शनिक थे उनका नाम चार्वाक था,इनका कहना था कि” ऋणम कृत्वा घृतम् पिबेत् ” अर्थात ऋण लेकर घी पियो। उसी नियम पर चल कर लोग कर्ज तो लेते है लेकिन उस कर्ज को दे नही पाते,फिर नतीजा वही निकलता है जिसकी लोग कल्पना भी नही कर सकते, अर्थात मौत। इसी से सम्बंधित एक घटना मेरठ में घटित हुई,जिसमे एक व्यापारी का पूरा परिवार ही मौत को गले लगा लिया, कारण परिवार पर काफी कर्ज का होना है जो करोड़ो मे था। इस भारी-भरकम कर्ज को लेकर परिवार पूरी तरह से खत्म हो गया। जिसमें तीन पीढ़ी के मिलाकर 5 लोग अपनी कहानी खत्म कर दिए।अब सबसे बड़ी समस्या यहीं है कि लोग किसी भी समस्या का निराकरण नही खोजते बल्कि अपनी जान देने मे भलाई समझते है। परिवार मे एक सबसे बड़ी समस्या जो देखने मे आ रही है वो है शक की। शक मे न जाने कितने परिवार बर्बाद होते जा रहे है। ऐसी ही एक घटना रांची (झारखंड) में देखने को मिली, जहां पर एक डॉक्टर ने परिवार के पांच सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना का केंद्र भी वही है जो नही होना चाहिये,अर्थात वही शक और प्रताड़ना। एक परिवार की नींव टिकी होती है विश्वास पर,और जब विश्वास का ही गला घोंट दिया जाय तो फिर परिवार कैसे चलेगा। आज के समय में परिवार के टूटने के मुख्य कारण यही है कि परिवार में विश्वास की कमी होती जा रही है,और इस कमी के कारण लोगों मे शंका घर बना रही है,जिसके कारण ही लोग अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे है।अगर देखा जाय तो लोगों के अंदर सहनशीलता का जो पैमाना है ,उसमें भी दिन-प्रतिदिन कमी ही हो रही है। ———————————————————————-इसलिये जिंदगी को अगर निर्बाध रूप से पटरी पर दौड़ाना है तो सभी लोगों को इस बात का ध्यान रखना ही पड़ेगा ,कि कहीं से भी जिंदगी के अंदर किसी भी प्रकार की शंका का प्रवेश न हो,और अगर प्रवेश हो भी जाये तो धैर्य को नहीं टूटने देना चाहिए।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा **********************************

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