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एक मनुष्य के शरीर की देख -रेख करने के लिए जरूरी है कि दो हाथ तो होने ही चाहिए,क्योंकि बिना हाथ के जीवन काटना बड़ा कठिन होता है, दोनों हाथो को अलग-अलग काम दिए गए है,अब इन हाथो पर निर्भर है कि, कौन कितना काम करता है। इसी प्रकार से देश की ब्यवस्था को देखने के लिए भी दो प्रकार के हाथ है एक न्यायपालिका के रूप मे तो दूसरा कार्यपालिका के रूप मे। अब इन्ही दो हाथो से देश की ब्यवस्था का संचालन का जिम्मा दिया गया है। देश में दो अलग-अलग प्रकार की जिम्मेदारी मिली हुई,दोनों का अलग-अलग क्षेत्र है। लेकिन अब के समय में न्यायपालिका के ऊपर बढ़ते लोड के वजह से ये अपना ही काम नही कर पा रही है। कारण सबसे बड़ा ये है कि कार्य पालिका का बेहतर ढंग से काम न करना। आज सरकार मे सभी तंत्र फेल हो जा रहे है,जिसके कारण न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है।अगर गलती से कोर्ट नही रहती तो बहुत मुश्किल होता है, क्योकि आज के समय मे कोई भी विभाग अपनी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नही है। सबको सातवाँ वेतनमान तो चाहिये,लेकिन काम न करना पड़े। अगर हर विभाग के लोग अपनी -अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से उठा लें तो फिर न्यायपालिका का आधा काम हल हो जाएगा। अगर काम का बोझ आधा कम हो जाये तो आने वाले समय मे कोई भी मुख्य न्यायाधीश को काम के बोझ तले आँसू न बहाना पड़ेगा। लेकिन देश के ढीले तंत्र के कारण काम बढ़ता जा रहा है। आज के समय मे अक्सर देखा जाता है कि कोर्ट के आदेश देने के बाद ही पुलिस एफआईआर दर्ज करती है, नही तो कितने मामलों मे पुलिस वाले एफआईआर दर्ज ही नही करते,फिर मामला कोर्ट मे जाता है। अब अगर ये मामला पुलिस रिकार्ड मे दर्ज हो जाता तो कोर्ट मे भीड़ कम होती। इस समय दिल्ली सरकार को हर काम के कोर्ट की फटकार पड़ रही है,जिस प्रकार से कोर्ट हर काम के लिए दिल्ली सरकार को सुझाव दे रही है,इससे क्या अनुमान लगाया जाय। जनता के प्रति कार्यपालिका कितनी जबाबदेह है,इस बात को सरकार नही समझती और उसको समझाने के कोर्ट को डंडा करना पड़ता है। हद तो तब हो जाती है जब कोर्ट को चिकनगुनिया और डेंगू से तड़फते मरीजो को लेकर सरकार को याद दिलाना पड़ता है कि आप जिम्मेदारी समझो। अब अगर न्यायपालिका को कार्यपालिका से ये कहना पड़े की आप कुछ काम भी कर लिया करो। तो कार्यपालिका का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि कार्यपालिका कितना गम्भीर है। आज की स्थिति ये है कि कोर्ट को हर काम में हस्तक्षेप करना पड़ रहा है अब वो चाहे स्वास्थ्य विभाग हो, पुलिस विभाग हो,सूचना का अधिकार हो,क्रिकेट हो, चकबन्दी करवाना हो,मेडिक्लेम लेना हो,लापरवाही से इलाज का मामला हो, नेताओं का बड़बोलापन से आहत का मामला हो या फिर किसी के मानहानि का मामला हो,और भी न जाने कितने मामलों में केस दर्ज होता है। अब अगर किसी ने किसी नेता को अपशब्द कह दिया तो उसका मामला भी कोर्ट देखें। ऐसे मामलों से मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है जब कि कोर्ट मे अधिवक्ताओं की संख्या ज्यादा बढ़ नही पा रही है,लिहाजा कोर्ट खुद मुकदमों के बोझ से दबता जा रहा है। *****************************************इसलिये अगर न्यायपालिका का बोझ कम करना है तो यह बहुत ही जरूरी है कि कार्यपालिका अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाए,और निभानी भी चाहिए , जिससे कि दोनों हाथो पर बराबर का काम पड़े। **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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