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मोतियाबिंद एक ऐसा रोग है जिसके होने पर मनुष्य को कोई भी वस्तु साफ नजर नही आती,फलस्वरूप मरीज को आपरेशन करवाना पड़ता है। लेकिन अगर यही मोतियाबिंद हमारे सिस्टम की आँखो मे हो जाय तो उसका इलाज नेपाल के आँख अस्पताल मे भी नही हो सकता। जिस तरह से सिस्टम इन धुँधली आँखो से पैरालंपिक के खिलाड़ियों को देखता है,इसको तो फिलहाल यही कहेगें। ओलंपिक के खिलाड़ियों के लिये सुविधा और प्रोत्साहन का पैमाना कुछ और होता है जब पैरालंपिक खिलाड़ियों के लिए न तो उतनी सुविधा दी जाती है और नही ही उतने भारी पैमाने पर प्रोत्साहन राशि। ओलंपिक मे जिस प्रकार से सिंधु,साक्षी पर धनवर्षा की गयी ये क्या दर्शाता है। जब कि इसी देश के वीर जवान भी है जो अपनी जान हथेली पर ले कर देश की रक्षा करते है ,उनके साथ कैसा ब्यवहार किया जाता है। यही सैनिक अगर देश की रक्षा करने मे वीरगति को प्राप्त हो जाता है तो उसको सरकार 5 से 10 लाख रुपये देने में भी कतराती है, सिस्टम को लगता है कि हम इन सैनिकों को पैसे देकर एहसान कर रहे है,सिस्टम का यही काम समझ से परे है। एक खिलाड़ी को अनगिनत करोड़ों रुपये,फ्लैट,नौकरी देने की होड़ लगी रहती है। ये सब देने मे एक ही राज्य नही होते,अधिकतर राज्य की सरकारे प्रोत्साहन राशि का वितरण करती है। मैं इन सब का विरोधी नही हूँ, लेकिन मेरा बस इतना कहना है कि हमारे शहीद सैनिको के परिजनों को क्यो करोड़ों रुपये,फ़्लैट नही मिलता। उनको क्यों 5-10 लाख दे कर अपने ज़िम्मेदारी से इतिश्री कर लिया जाता है।सचिन तेंदुलकर की बीएमडब्लू शहीद के दरवाज़े पर क्यों नही खड़ी होती। एक फिल्म के हीरो को फ़िल्म मे शूटिंग के करोड़ो रुपये दिये जाते है, लेकिन एक सैनिक को इतनी कम सेलरी पर लद्दाख़ की की वादियों मे ड्यूटी कराई जाती है। मन्दिरों के अंदर करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाया जाता है,लेकिन इन शहीद परिवार के सदस्यों के लिये लाख रुपये नही निकल पाता। किसी हीरोइन को किसी कार्यक्रम मे बुलाने के लिये करोड़ो रुपये एक घंटे के लिए दे दिया जाता है,लेकिन शहीद के लिये लाख रुपये नही निकल पाता। हमारे देश के राजनेता लोग राजनीति तो खूब करते है लेकिन कब करते है जब बिसाहडा जैसा कोई कांड हुआ हो,या रोहित वेमुला जैसा कांड हो,तब ये नेता हर काम छोड़ कर वहाँ पहुँच जाते है, लेकिन अगर कोई सैनिक शहीद हो जाता है तो उसके अंतिम संस्कार मे किसी भी दल का क़ोई नेता दिखाई नही देता है। इसका भी एक मुख्य कारण ये है कि उस शहीद के परिवार से कोई वोट नही मिलने वाला, लेकिन अगर दलित या अल्पसंख्यक वर्ग का कोई देश मे मामला आ गया तो नेताओं मे होड़ रहती है कि कौन जल्दी पहुँचे। सोचने वाली बात है कि देश का रक्षक जब शहीद हो जाता है वहाँ पर किसी भी दल के नेता को आने में शर्म लगती है। नेताओ को यह बात तो सोचना चाहिए कि यह वही सैनिक है किसके बल पर हम आराम से एअर कंडीशनर मे बैठ कर पत्नी और बच्चों के साथ 84 इंच एलईडी का लुत्फ़ लेते है। आज हमारे जवान अगर नही होते तो जिस समय संसद भवन पर हमला हुआ,वह सांसदों पर भारी पड़ जाता,एक भी नेता उस समय नही बचता। लेकिन धन्य है हमारे सैनिक जो देश के लिए हर समय मरने के लिए तैयार रहते है। **************************************** इतना बड़ा भेदभाव इन शहीद सैनिको के साथ क्यों किया जाता है ये बात समझ से परे है। हमारे अपनों से अगर किसी आतंकी का नाम पूछा जाय तो काफी हद तक लोग बता देंगे, लेकिन अगर किसी शहीद सैनिक का नाम पूछा जाय तो शायद ही कोई होगा जो नाम बता सकें।जो सैनिक शहीद हो जाते है तो प्रशासन कुछ न कुछ उनके परिजनों से वादा करते है लेकिन वो भी वादा पूरा नही होता और शहीद परिवार के लोग प्रशासन की तरफ टकटकी लगाये रहते है। लेकिन इतना भेदभाव अच्छी बात नही है ,इसलिए हमारे सिस्टम को मोतियाबिंद का आपरेशन करवा कर तस्वीर धुँधली देखने के बजाय साफ देखने की कोशिश करना चाहिए।—————————— जय भारत—-जय जवान ——————————— **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक सेक्टर-एक नोएडा *****************************************
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