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सत्य बोलना पाप है

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मनुष्य जीवन मे प्रत्येक मनुष्य को सभी कार्य करने की छूट नही दी जा सकती, क्योंकि हर कार्य हर जगह पर शोभा नही देता,इसलिये कुछ कार्यो पर लगाम लगाना पड़ता है। जैसे कि सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करना,या फिर नो साइलेन्स जोंन मे शोरगुल करना इन सब बातों की मनाही होती है ,चिड़ियाघर मे जानवरों के साथ छेड़छाड़ की मनाही होती है एवं उनको कुछ भी खिलाने की रोक होती है। रेलवे पटरियों पर चलना और बैठना सख्त मना होता है। ये सब मनाही तो सही लगती है लेकिन वर्तमान समय मे सत्य कहना भी मना है,क्योकि अगर कोई भी ब्यक्ति सत्य बोलने की कोशिश करेगा तो उसका बलिदान होना तय है,देखने वाली बात ये रहती है कि ये बलिदान कैसा होगा।

अगर वह ब्यक्ति प्रशासनिक सेवा मे है तो उसके लिए यह डर और भी बढ़ जाता है।इन सेवा में रहने वालो के सिर के ऊपर हमेशा तलवार लटकती रहती है अगर उसने गलती से भी शासन के खिलाफ आवाज उठाया तो उसका सस्पेंड होना निश्चित है। इस कलियुग के प्रथम चरण मे सत्य बोलने की सजा दो तरह से मिल सकती है,जिसमें पहला, नौकरी से हाथ धोना और दूसरा, प्राण से हाथ धोना। इन दोनो मे से एक सजा जरूर मिलती है। सत्य बोलने की सजा सतेंद्र दूबे को बिहार में और मंजूनाथ को उत्तर प्रदेश मे मिल चुकी है जिनको अपना प्राण भी देना पड़ा था। जबकि उप्र मे ही दुर्गाशक्ति नागपाल,अमित कुमार और हरियाणा मे अशोक खेमका अपने निलंबन को झेल चुके है। अब सवाल सबसे बड़ा यही है कि क्या कलियुग के इस प्रथम चरण मे सत्य बोलना इतना पाप हो गया है।

अगर आप केंद्रीय सेवा,राजकीय सेवा या प्राइवेट सेवा मे है,अगर आफ़िस के अंदर या कम्पनियों के अंदर कोई गलत तरीके के कार्य हो रहा है,या आपको गलत करने पर मजबूर किया जा रहा है तो आप को चाहिये कि आप मौन ब्रत का पालन करें ,क्योकि ये सेहत के लिए लाभदायक होगा। अगर कोई भी ब्यक्ति कही रास्ते मे जा रहा है और रास्ते में किसी दूसरे ब्यक्ति का मर्डर हो गया तो उस ब्यक्ति के ऊपर दहशत के बादल मंडराने लगते है। अब वह चाह कर भी उस ब्यक्ति का सहयोग नही कर सकता क्योंकि मर्डर करने वाले को जिस दिन पता चल गया कि फला आदमी गवाही करेगा तो उसका भी वही हश्र होगा , जो उस ब्यक्ति का हुआ था।

सत्य को बोलने की सजा हमारे देश मे अनगिनत कर्मचारी और अधिकारी झेल चुके है। बहुतों ने तो अपने वेश कीमती जान तक को कुर्बान कर दिया इसी सत्य बोलने के चक्कर मे,लेकिन क्या सत्य वास्तव मे नही बोलने लायक रह गया है क्योकि जब सत्य बोलने पर इतना संकट आ सकता है,तो कौन हिम्मत करेगा। इसलिए मेरा मानना है कि सत्य बोलना आज के समय मे खतरे से खाली नही रह गया है,जबकि पहले हम लोगों को यही सिखाया गया है कि झूठ बोलना पाप है,लेकिन समय ने करवट ले लिया है और अब हम यह आराम से कह सकते है कि सत्य बोलना पाप है।।

नीरज कुमार पाठक नोएडा

 

डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।

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