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दिल्ली का नाम सुनते ही जेहन मे ये आ जाता है कि वह शहर जो भारत की राजधानी है। जहां पर भारत के सैंकड़ो वीवीआइपी लोग रहते है जिनमें देश के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश,सभी सांसद,दिल्ली सरकार के सभी विधायक, बहुत से देशो के राजदूत आदि भी लोग दिल्ली मे ही निवास करते है फिर भी दिल्ली के लोग डेंगू और चिकनगुनिया से परेशान है लेकिन दिल्ली सरकार मस्त है,मस्त इसलिए कि मोदी और एलजी तो है ही। ये दोनो लोग किसी न किसी तरह से दिल्ली की सरकार चलाएंगे ही। यही सोच रख कर केजरीवाल और उनके मंत्री विदेश से लेकर देश के अंदर भ्रमण पर चल रहे है, इस समय ऐसा लग रहा है जैसे पर्यटन मंत्रालय सबके पास हो गया हो। आप सरकार के जबाब भी गैर जिम्मेदाराना होते है जैसे की स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन के बोल है की चिकनगुनिया से किसी की मौत नही होती।दिल्ली सरकार के मंत्री को कम से कम दिलासा तो देना चाहिये,लेकिन यहां का हाल बिल्कुल उल्टा है। मंत्री जिम्मेदारी लेने के बजाय जिम्मेदारियों से भागने मे लगे है। दिल्ली सरकार मे मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक का एक ही उत्तर होता है कि मोदी और एलजी से बोलो, मतलब हर काम के लिए मोदी और एलजी। लेकिन इन मन्त्रियों से कोई ये नही पूछता है कि अगर सब काम प्रधानमंत्री और एलजी ही करेगे तो फिर दिल्ली सरकार को किस लिये चुना गया है,करोड़ो रुपये सैलरी मे बर्बाद हो रहे है। सबसे बड़ी बात ये है की केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की लड़ाई मे निरीह जनता पिसते जा रही है।अब सवाल सबसे बड़ा यही है कि इन दोनो सरकारो की लड़ाई मे नेताओं का तो कोई नुकसान नही है,लेकिन जो मरीज दर्द से कराह रहा है ,उसके दर्द के ऊपर मलहम लगाने वाला कौन है।। *****************************************डेंगू और चिकनगुनिया से हो रही मौतों का सिलसिला जारी है। आज हालत ये है दिल्ली का कोई भी हॉस्पिटल ऐसा नही है जो हाउस फुल न चल रहा हो। मरीजो की हालत ये है कि लोग अस्पतालों मे बेड के लिए दो से तीन दिन बरामदे मे गुजार रहे है तब जाकर उनका नम्बर आ रहा है। किसी भी हॉस्पिटल मे कोई भी बेड नही खाली रहने के वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन क्या ये सरकार की नाकामी नही है जो अपने जिम्मेदारियों से भाग रही है। जब कि सभी मंत्री और सभी पार्टियों को चाहिए कि इस समस्या का हल मिलकर करे,और सबका आपस मे सहयोग ले,बजाय इसके कि एक दूसरे पर दोषारोपण करे। लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य यही है कि देश के अंदर काम कम होता है राजनीति ज्यादा होती है। सब मिलाकर समस्या इसीलिये बनी भी हुई है, और इस समस्या का इलाज फिलहाल मुश्किल ही नही नामुमकिन लगता है।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा *****************************************
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