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हर मनुष्य का कभी न कभी स्वर्ण काल आता है,जिसमे वह काफी उन्नति करता है और विकास की तरफ तीब्र गति से बढ़ता है। इसी क्रम मे वर्ष मे तीन महीने डॉक्टरी पेशा से जुड़े लोगो के लिए भी स्वर्ण काल होता है। ये तीन महीने जुलाई,अगस्त और सितम्बर काफी शुभ होता है,लेकिन मरीजो के नजरिये से देखा जाय तो ये तीन महीने काफी बुरा समय होता है। क्योकि अधिकांशतः परिवार मे दो-तीन सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित रहते है। इस समय रोगियों की संख्या मे काफी इजाफा होता है, जिसके वजह से अस्पतालों की ब्यवस्था बिल्कुल चरमरा जाती है। इन चरमराती ब्यवस्था का खामियाजा कौन भुगते। ये रोगियो को ही भुगतनी पड़ती है,क्योंकि कोई भी अस्पताल हो जब तक सुबिधा शुल्क पूर्णरूप से नही मिलता तब तक कोई भी डॉक्टर जागने की कोशिश नही करता। तीन महीने डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन की कमाई का द्वार सीधे लक्ष्मी जी से जुड़ जाता है। अब सवाल ये है कि ये तीन महीनों मे मरीज कंगाली के तरफ चला जाता है। डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोग से मनुष्य दहशत मे होता है। इस दहशत का मजा भरपूर लेते है डॉक्टर और पैथोलॉजी वाले। जितने भी जांच केंद्र है हर जगह भीड़ का रेला देखने लायक होता है। अस्पताल के अंदर कोई सैर करने नही जाता,अगर कोई जाता है तो मजबूरी मे। अस्पताल और श्मशान दोनो जगह पर लोग खुश होकर नही जाते,जब भी जाते है तो रोते ही जाते है। चाहे वह आँसू गिराकर रोए या फिर दिल से रोए। लेकिन मरीज की हालत तो दयनीय हो जाती है। इसमे भी भगवान न करे कि आदमी की आय कम हो क्योकि कम आय का ब्यक्ति तो वैसे भी अपने मासिक खर्चे से ही परेशान रहता है। ऊपर से अगर डेंगू का गलती से डंक लग गया तो समझो कि इस गरीब आदमी की कहानी खत्म। कहानी खत्म इसलिए अगर गरीब आदमी को डेंगू हो गया तो वह आर्थिक रूप से बिल्कुल टूट जाता है।परिवार कम से कम दो-तीन साल पीछे चला जाता है। *****************************************इन मामलो मे केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनो ही गम्भीर नही दिखते,क्योंकि डेंगू और चिकनगुनिया आज का रोग नही है फिर इस पर कोई ठोस कदम नही उठाते , जिससे कि यह रोग हो ही न, लेकिन इस मामले मे कोई भी सरकार ध्यान नही देती। ये ऐसी समस्या है जो न तो अमीर देखती है न गरीब देखती है। फिर भी कोई सुनवाई नही है, इन दिनों तो सबका बुरा हाल रहता है। इसमे भी गरीब लोगो का जीवन तो काफी दुखमय होता है। दुखमय का कारण ये है कि इस समय हर जांच केंद्र पर भीषण भीड़ रहती है,और इन जांचो का मनमाने ढंग से पैसा मांगा जाता है। इस समय स्थिति ये हो जाती है कि जो जांच 300 रुपये मे होनी रहती है वो 800-1000 तक लिया जाता है,तो जांच करने वाले का तो मजा रहता है उसकी कमाई बढ़ती जाती है। इन्ही जांच केंद्र से रिफर किये गए डाक्टरों के पास कमीशन भी पहुँचता है। इन्ही सब फायदों के कारण कोई भी नही चाहता कि देश के अंदर डेंगू और चिकनगुनिया को रोका जाय,क्योंकि रोकने का मतलब है कि कमाई बन्द। फिर फ्लैट कैसे खरीदे जाएंगे। सोचने वाली बात है कि जब छोटा सा देश श्रीलंका मलेरिया मुक्त बन सकता है तो फिर अपना देश क्यो नही बन सकता,लेकिन इन्ही भ्रष्टाचार के कारण भारत का मलेरिया मुक्त होना असंभव लगता है। **********************************************************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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