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मानसिक प्रदूषण

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देश मे अगर प्रदूषण की बात करे तो इस समय नये-नये किस्म के प्रदूषण देखने को मिल रहे है। समाज के लोगो मे यह प्रदूषण अपना दायरा बढ़ाता ही जा रहा है। इसी तरह समाज के अंदर मानसिक प्रदूषण काफी हद तक बढ़ता जा रहा है। इस भागदौड़ की जिंदगी मे मनुष्य के पास या तो उसके पास समय नही है या फिर उसकी इंसानियत और मानवता दोनो खत्म होती जाती है। क्योकि देश मे कुछ घटनाएं तो फिलहाल इसी तरफ इशारा कर रही है कि अपनो के बीच से इंसानियत मरती जा रही है। आज के समय मे कही पर भी अगर कोई भी वाहन टक्कर मार दे तो आदमी तड़पता रहेगा लेकिन कोई भी मनुष्य उसको उठाने की जहमत नही करता उसकी ये लापरवाही उस घायल ब्यक्ति को भारी पड़ जाती है,इतनी भारी पड़ती है कि वह हमेशा के लिए चिरनिद्रा मे भी सो जाता है फिर भी अफसोस कि हम इंसानियत का पाठ पढ़ना भूलते जा रहे है,और उसको हम याद रखने की कोशिश भी नही करते।*****************************************एक दिन एक बंगाली युवक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मे पैदल अपने मस्ती मे चला जा रहा था,उसके अंदर भी कुछ न कुछ उधेड़बुन चल रही होगी तभी अचानक एक ऑटो आकर उसको जोरदार टक्कर मारता है,वह बंगाली युवक जमीन पर गिर जाता है,तभी टक्कर मारने वाला युवक ऑटो से उतरता है उतरने के बाद भी अपने ऑटो को देखा, जबकि घायल युवक के तरफ देखा तक नही,फिर जाकर ऑटो मे बैठ गया और ऑटो स्टार्ट करके चला गया। लेकिन इस घटना के बाद न जाने कितने लोग वहां से गुजरे लेकिन घायल युवक के तरफ देखे तक नही। पुलिस का वाहन भी गुजरा लेकिन कोई भी पुलिस वाला ये नही सोचा की इस घायल ब्यक्ति को हम उठाकर हॉस्पिटल पहुँचा दे। वे पुलिस वाले भी चले गये। एक रिक्शा वाला आया,अब उसकी संबेदना देखिए कि वह रिक्शा वाला उस ब्यक्ति की मोबाइल को उठा कर चलता बना ,लेकिन उसके भी दिमाग मे नही आया कि इस घायल ब्यक्ति को हॉस्पिटल मे भर्ती करा दे। अंततः वह ब्यक्ति हॉस्पिटल नही पहुँच पाया और वही पड़ा अंतिम सांस ले लिया। ये हमारे भारत की मानसिकता का एक उदाहरण है।। ***************************************** अब दूसरी मानसिकता का उदाहरण उड़ीसा के कालाहांडी के एक अस्पताल की दर्दनाक घटना का जो एक पत्नी की मृत्यु के बाद एंबुलेंस के न मिलने के कारण उसका पति अपने पत्नी की लाश कन्धे पर रखकर चल दिया। उसके साथ उसकी 12 साल की बेटी भी चल दी। तकरीबन 10 किमी की दूरी तय करने के बाद उसको एंबुलेंस मुहैया कराया गया,जिसके बाद उसने अपने कन्धे से लाश को उतार कर एंबुलेंस मे रखा। लेकिन इस घटना मे अस्पताल प्रशासन की जो कमी थी कि एंबुलेंस मुहैया नही कराये, ये और नही अस्पताल के लोगो मे फैल रहे मानसिक प्रदूषण का ही एक नमूना है।
ऐसे ही उड़ीसा के बालासोर जिले मे एक मृतक बृद्ध महिला जो ट्रेन से गिर कर मर गयी थी उसके साथ देखने को मिली,उसके मरने के बाद भी जल्लादों की तरह से लोग पेश आये। उस बृद्ध महिला के हाथ और पैर को तोड़ कर बोरे मे भर कर दो आदमी जानवरो की तरह बांस मे लटका कर ले गए। *****************************************मध्य प्रदेश मे एक घटना का जिक्र करना जरूरी है क्यो कि इसमे तो जनता ने अपनी इंसानियत का खूब परिचय दिया है। जिसमे मुर्गियों से भरी ऑटो का भिड़ंत दूसरे वाहन से होने के बाद ऑटो का ड्राइवर गाड़ी के नीचे दब गया जिसको लोगों ने निकालना मुनासिब नही समझा बल्कि मुर्गियां लूटना जरूरी समझा ।। ****************************************। तो इन सब घटनाओ से साफ पता चलता है कि मनुष्य की मानसिकता कितनी गंदी होती जा रही है। उसकी सोच मे कितना विरोधाभास होता जा रहा है। मनुष्य की जान समाज के दूषित विचारो के कारण बिल्कुल सस्ती हो गयी है। इसलिए आवश्यकता है कि हमारे समाज को इन मानसिक विचारो से बाहर निकाल कर सभ्य समाज की स्थापना की जाय।जिसमे जो भी मानव रहे वो कम से कम इंसानियत से परिपूर्ण हो। ****************************************-नीरज कुमार पाठक सेक्टर-1 नोएडा **********************************************************************************

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