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जापान को हमलोग उगते हुए सूरज का देश कहते है, जबकि भारत को उगते सूरज को प्रणाम करने के लिये जाना जाता है। यहां पर सुबह के समय अनेकों हिन्दू तीर्थ स्थलों पर घण्टे-घड़ियाल के साथ सूर्यदेव की पूजा से शुरू होती है। उगते सूरज की पूजा तो सभी लोग करते है,लेकिन डूबते सूर्य की पूजा कोई नही करता (केवल बिहार ऐसा राज्य है जहां साल मे एक दिन डूबते सूर्य की पूजा होती है)। अगर किसी से डूबते सूर्य की पूजा करने को कहा जाय तो वह कहने वाले को बेवकूफ ही समझेगा,क्योंकि कोई भी मनुष्य डूबते सूर्य की पूजा करने की इच्छा नही रखता। लेकिन अगर मनुष्य डूबते सूर्य की भी पूजा करे तो यही समझा जाएगा कि लोग स्वार्थी नही है। इसीलिए कबीरदास ने कहा है कि दुख मे सुमिरन सब करै, सुख मे करै ना कोई। जो सुख मे सुमिरन करै,दुख काहे को होय। लेकिन मनुष्य की आदत है दुख मे ही भगवान को याद करता है सुख मे नही याद करता। क्योकि जब तक आदमी पूर्णरूपेण खुश है वह भगवान को याद नही कर सकता। यह मनुष्य स्वभाव है कि वह उगते सूर्य की पूजा करता है,फलदार बृक्ष मे खाद-पानी की कमी नही होने देता,उसकी देखभाल करता रहता है।
उसमे कोई रोग न लगे,इसको ध्यान मे रख कर उस बृक्ष पर दवा का छिड़काव किया जाता है। लेकिन अगर बगीचे मे जो बृक्ष फल नही देता उसको कोई पानी भी नही देना चाहता। इसी प्रकार से अगर जिसके पास दुधारू जानवर है उनकी तो बड़ी सेवा होती है,समय -समय पर उनको खाने-पीने की उचित ब्यवस्था होती है। लेकिन जो पशु अगर दूध नही दे रहे है तो उनको सूखा भूसा भी खाने को नही मिलता। इसी तरह से एक पिता की भी सेवा तभी लोग करना चाहते हैं जब उनकी भी कुछ कमाई हो। अगर कमाई नही है तो इस पिता को बहुत कम संख्या मे लोग होंगे जो पिता का सम्मान करते हो। क्योंकि आज के समय मे कोई भी ब्यक्ति बिना स्वार्थ के कुछ करने वाला नही है। इसीलिए कहा भी गया है
स्वारथ लागि करै सब प्रीति, सुर, नर,मुनि सबकी यहि रीति। अर्थात स्वार्थ के कारण ही सब लोग प्रेम करते है,अब वह चाहे देवता,मनुष्य ,मुनि हो सबका यही काम है। लेकिन कोई भी प्राणि निःस्वार्थ सेवा नही कर पाता। यही स्वार्थ मनुष्य को बांध कर रखता है,यहां तक कि पति-पत्नी मे भी स्वार्थ की भावना होती है।
इसी प्रकार से हमारी सरकार भी खिलाड़ियों के साथ ब्यवहार करती है अगर कोई खिलाड़ी पदक लेकर आता है तो उसको जनता और सरकार दोनों मिलकर सिर पर बैठा लेते है लेकिन अगर जो खिलाड़ी पदक नही ले आया उसको कही से सौ रुपये भी नही मिलते, और न ही उनका कोई नाम जानता है।लेकिन पदक लाने वाला रातोरात करोड़पति की श्रेणी मे आ जाता है। उसके पास मकान,गाड़ी और पैसा सब कुछ हो जाता है।।
नीरज कुमार पाठक सेक्टर- एक नोएडा
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
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