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स्वास्थ्य क्षेत्र मे भ्रष्टाचार की जड़े

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स्वास्थ्य विभाग को सरकार ने यह सोचकर बनाया था कि यह विभाग जनता के भलाई के लिए कार्य करेगा,अब वो चाहे गरीब मरीज हो या धनी मरीज हो। फिलहाल धनी लोग तो प्राइवेट अस्पतालों मे तो इलाज करा लेते है लेकिन गरीब,असहाय लोग कहां जाये उनके लिए तो बस सरकारी अस्पताल ही सहारा होता है। लेकिन दुख इस बात का होता है कि देश बदलने के साथ ही अस्पतालों की कार्यशैली एवं मानसिकता दोनो मे परिवर्तन होता जा रहा है। मुख्य बात ये हो गयी है कि पैसे के पीछे आदमी इस कदर भाग रहा है कि उसके अन्दर इंसानियत नाम की चीज खत्म हो गयी है,अब अस्पतालों का एक लक्ष्य हो गया है पहले पैसा,तब इलाज। मरीज के कानों मे जैसे ही अस्पताल शब्द की आवाज सुनाई पड़ती है तो उसको बेहद शांति मिलती है,उसके दिमाग मे ये जरूर आ जाता है कि अब मैं ठीक हो जाऊँगा,लेकिन इस आर्थिक युग मे अस्पताल के लिये मरीज का कोई मतलब नही रह गया है अगर मतलब होता है तो पैसे से। अब अगर आपके पास पैसा है तो इलाज अच्छा मिलेगा नही तो बेड पर पड़े-पड़े चिल्लाते रहो,क़ोई भी अस्पताल का कर्मचारी आपके तरफ देखेगा भी नही,कहने का मतलब है कि रुपये के आगे इंसानियत का पतन होता जा रहा है।केवल एक चीज मे अस्पताल का विकास हुआ है कि इस क्षेत्र मे माफियाओ की पकड़ बढ़ गयी है। माफिया जब से स्वास्थ्य के क्षेत्र प्रवेश कर गए है तब से मेडिकल की परिभाषा ही बदल दिये है। इस क्षेत्र मे भी भ्रष्टाचार की जड़े काफी हद तक जम चुकी है। इन दवा माफियाओ के वजह से दवा के दाम इतने ऊँचे हो जाते है कि गरीब आदमी के बस की बात नही होती है। पैसा कमाने के पीछे इंसान इस कदर पागल है की जो रिक्शे वाले है उनसे भी इंजेक्सन लगाने के बीस रुपये ले ही लेते है,जबकि इन सरकारी कर्मचारियों को मोटी सेलरी मिलती है। इसके बावजूद उनसे पैसा मांगते जो दिन भर रिक्शा खींच कर कमाते है। सरकारी हॉस्पिटल भी अब सरकारी नही रह गए है,यहां पर भी अगर आपके पास पैसे नही है तो इलाज की सम्भावना कम ही है। इन अस्पतालों मे अगर आपके पास पैसा है तो ही आपको ध्यान से देखा जायेगा, नही तो फिर मुश्किल ही है की आपको उचित इलाज मिले। आखिर इस तरह की लापरवाही अस्पतालों के कर्मचारी क्यो करते है जिससे मरीज की जान चली जाती है, अगर मरीज की जान किसी रोग के वजह से जाये, तो बात समझ मे आती है लेकिन अगर कोई मरीज लापरवाही के वजह से मर गया तो हमारे सिस्टम के लिए शर्मिंदगी की बात है।। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक नोएडा ———————————————————————-

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