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जहर खुरानी का सच

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तारीख 25 अगस्त सन् 2003 को मैं अपनी बड़ी बहन के फ़रीदाबाद स्थित कमरे से लखनऊ के लिये रवाना हुआ, फरीदाबाद मे मुझको एक बस मिली जिससे मैं ईदगाह डिपो,आगरा पहुँच गया। वहाँ से ऑटो के द्वारा बिजलीघर,आगरा के बस स्टेशन पहुँच गया ,फिर उस बस अड्डे पर राजस्थान परिवहन की बस मिली जो जयपुर-आगरा-लखनऊ के लिये चलती है ,वह बस 2 बजकर 20 मिनट पर लखनऊ के लिये रवाना हो गयी। राजस्थान परिवहन की बस मे शीशे की साइड मे मैं बैठ गया। मेरे बगल मे एक आदमी आकर बैठ गया फिर उसके बगल मे कोई दूसरा ब्यक्ति आकर बैठ गया। बस अपने निर्धारित समय पर रवाना हो गयी। मैंने कंडक्टर से लखनऊ का टिकट लिया, और फिर अपने सीट पर आकर बैठ गया। मेरे बगल मे बैठा आदमी ने कानपुर का टिकट लिया था, मुझसे बातचीत शुरू कर दिया। उससे करीब आधे घण्टे तक बातचीत हुई,जिसके दौरान उसने बताया कि मैं बहराइच जिले मे नायब तहसीलदार पद पर हूं। अब चूँकि मेरे पिताजी भी जिला उद्यान अधिकारी पोस्ट से सेवानिवृत हुए थे। इसलिए मेरा झुकाव कुछ ज्यादा ही उस ब्यक्ति से हो गया था। बात करते-करते शाम होने को आयीं,उस ब्यक्ति ने शाम को अपनी अटैची खोली और उसमे से एक बिस्कुट का पैकेट निकाला और दो पीस बिस्किट खाने के बाद एक पीस बिस्किट का मुझे देने लगा तो मैंने खाने से मना कर दिया ,लेकिन उस कथित तहसीलदार के बार -बार रिक्वेस्ट करने के बाद अनन्तः मुझे उस बिस्किट को खाना पड़ा,वो बिस्किट डबल क्रीम वाली थी। उस बिस्किट के खाने के बाद थोड़ा सा पानी भी पिया। इसके बाद मैं कब बेहोश हो गया,ये मुझको भी नही पता। फिर जब मुझको होश आया तो मैं बलरामपुर ,लखनऊ के हॉस्पिटल मे था ,और तारीख थी 26 अगस्त के रात्रि के 9 बजे। कहने का मतलब मैं टोटल 28 घण्टे बेहोश था। इन 28 घण्टो के बीच की घटना को अनुमान के आधार पर लिख रहा हूँ। जब मैं बेहोश हुआ था तो उस समय शाम के 6 बज रहे थे,उसके बाद सम्भवतः 12 बजे रात्रि मे उस बस को लखनऊ पहुँचना था,अब वह बस सही समय पर थी या नही ,ये नही पता। किसी तरह से चारबाग, लखनऊ पहुँचने के बाद पुलिस को सूचना मिल गयी तो पुलिस ने मुझसे कुछ पूछताछ शुरू किया। फिलहाल मेरे जानकारी मे कुछ भी नही था लेकिन पुलिस को मैं शायद अपने गांव के भतीजे लगने वाले संजय मिश्रा का पता बताया जो एक धर्मशाला के प्रबन्धक है । यह धर्मशाला जूता वाली गली,अमीनाबाद में स्थित है। पुलिस वाले रात्रि मे कहां जाते ,वे सुबह के समय धर्मशाला पर जाकर उस भतीजे से बताया। भतीजा तुरन्त चारबाग बस अड्डे आया और मुझको धर्मशाला के अंदर ले आये,इस दौरान मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी,ज्यादा हालत बिगड़ने पर उसने मेरे साले को सूचना दिया जो कि गोलागंज मे रहते थे। सूचना पाकर वो भी भागकर धर्मशाला आ गए,उनके साथ दो-तीन उनके मित्र भी आ गए, सब लोगो ने मिलकर मुझे बलरामपुर हॉस्पिटल मे भर्ती करा दिया। फिर वहाँ उपचार शुरू हुआ जिसके बाद मुझे 9 बजे रात्रि मे होश आया। होश आने के बाद मुझे पता चला की मेरे पैंट मे रक्खे 8000 रुपये गायब थे,और हाथ मे पहनी घड़ी भी गायब थी। मेरे पास शर्ट के पाकेट मे 60 रुपये पड़े थे जो आगरा मे लखनऊ तक का टिकट लेने मे कंडक्टर ने वापस किये थे। इस 60 रुपये की खबर सबको थी यहाँ तक कि लखनऊ पुलिस को भी। अगर बचा था तो एक लिफाफा मे एक पत्र जो मेरे छोटे भाई ने अपनी पत्नी को देने के लिए बोल रक्खा था,वह लिफाफा मैं शर्ट मे ऊपर के पाकेट मे रख रखा था वह पत्र बिल्कुल सुरक्षित मिला । फोन से जब छोटे भाई से बात हुई तो छोटे भाई ने उस लिफाफे को खोलने को कहा तो मैंने जब लिफाफा खोला तो उसमे दो नोट थी,एक थी एक हजार की और दूसरी थी पांच सौ की। अगर बचा था तो यही दो नोट और मेरी जिंदगी। काफी दिन तक दवा करते -करते काफी दिन बाद मैं सामान्य स्थिति मे आ पाया। इसको लिखने का उददेश्य मेरा यह है ज्यादा से ज्यादा लोग इसको पढ़े और समाज मे फैले इन राक्षस रूपी मनुष्यो से बचने की कोशिश करे। इस जहरखुरानी के मामलो मे कितने लोगो की जान चली जाती है या फिर वे पंगु बन कर जीवन के शेष दिन गिनते है। मेरे ऊपर तो भगवान का शुक्र था की मेरी जान बच गयी नही तो इन ज़हरखुरानो ने तो मुझे मारने की पूरी योजना कर रक्खी थी,ये इतने दरिंदे होते है कि अपने स्वार्थ के लिए दूसरे के प्राणों को लेने मे भी परहेज नही करते। मुझे तो डॉक्टरों ने बताया कि तुम्हारे बचने का कारण बार-बार उल्टी का होना था,जान बचने मे इस उल्टी का अहम रोल था। जब ये ज़हरखुरानी का केश मेरे साथ हुआ था तो मेरा छोटा लड़का मात्र तीन महीने का था,आज वह आठवीं क्लास का छात्र है।दिक्कत ये है कि पुलिस भी इन जहरखुरानों से मिली रहती है ,अगर पुलिस इन पर नकेल कसना चाहे तो कस सकती है,लेकिन वह कसेगी नही क्योकि पुलिस को भी जहरखुरानों से फायदा होता है। लेकिन पुलिस को ऐसा नही करना चाहिये क्योकि इसमे कितने निर्दोष लोगो को जान जाती है,इसलिये पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि इन मौत के सौदागरों को कड़ा से कड़ा सजा दी जाय,जिससे कि और कोई भी इंसान इनके चंगुल मे न फ़से। —————————————————————————————————————————————————–नीरज कुमार पाठक नोएडा ———————————————————————-

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