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इंसानियत की हत्या

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दिल्ली को कहा जाता है कि यह दिल वालो की है लेकिन अगर यहाँ पर रहने वालो का दिल ही कठोर पत्थर से बना हो तो फिर हम यह कैसे कह सकते है कि दिल्ली दिल वालो की है। दिल्ली के अंदर जिस तरीके से इंसानियत की हत्या लोगों के द्वारा की जा रही है ये अपने मे काफी निंदनीय है।पच्छिम बंगाल का रहने वाला मतिबुल के साथ जो कुछ भी हुआ ,इससे तो यही लगता है कि घोर कलियुग की शुरुआत हो गयी है। जिस प्रकार से ऑटो वाले ने उसको जोरदार टक्कर मारने के बाद ऑटो को रोक कर नीचे उतरा, फिर ऑटो के पीछे से होता हुआ अपने ऑटो को देखा, देखने के बाद वहाँ से ऑटो स्टार्ट किया फिर वहाँ से रफूचक्कर हो,अब ऑटो वाले की इंसानियत देखिए कि उसको कम से कम अस्पताल मे भर्ती तो करा दिया होता। लेकिन उसने एक बार भी उस ब्यक्ति के तरफ नही देखा जो रोड के किनारे तड़फ रहा था। इससे भी ज्यादा शर्म की बात ये थी कि एक रिक्शे वाला उधर से जा रहा था,उसने देखा मोबाइल पड़ा हुआ था ,वह रिक्शेवाला रिक्शे से उतरा और मोबाइल उठाया और चलता बना। लेकिन वह गलती से भी उस घायल ब्यक्ति के तरफ नही देखा। उस रास्ते से दिल्ली पुलिस की मोबाइल बैन भी गुजरी,लेकिन वह दिल्ली पुलिस जो कहती है कि आपकी सेवा मे तत्पर,वह भी उस घायल ब्यक्ति के तरफ नही देखें। पुलिस के अलावा भी सिविल आदमी भी उधर से गुजरे , लेकिन किसी ने यह जहमत नही उठाई कि इस ब्यक्ति को हॉस्पिटल मे भर्ती करा दिया जाय। इलाज न मिलने के अभाव मे उस घायल ब्यक्ति की मौत हो गयी। इतना भी किसी के समझ मे नही आया कि इस ब्यक्ति को अस्पताल पहुँचा दिया जाय। लेकिन लोग अपने मे मस्त रहते है किसी से कोई लेना -देना नही रहता । इसी प्रकार इंसानियत की हत्या का एक घटना उप्र के बहराइच जिले की है जिसमें दस माह का एक बच्चा भी भ्रष्टतंत्र की भेंट चढ़ गया। यह बच्चा इसलिए मर गया की इसको समय पर इंजेक्शन नही दिया गया। समय पर इंजेक्शन इसलिए नहीं दिया गया कि उस बच्चे की माँ के पास उस कम्पाउंडर को देने के लिए बीस रुपये नही थे। बीस रुपये न देने के वजह से उस कम्पाउण्डर ने उस लड़के को इंजेक्शन नही लगाया, जिसके कारण उस बच्चे की मौत हो गयी। ये हमारे लिये बहुत शर्म की बात है कि बीस रुपये के लिए एक नन्हे से जीवन को जो अभी समाज को देखने के लिए आँखे खोलने की कोशिश कर ही रहा था कि उस बालक की आँखे हमेशा के लिये बन्द करा दिये। ये हमारे सिस्टम का लूटतंत्र ही है जो जहां भी है जिस भी पोस्ट पर है वह वही लूटने मे लगा पड़ा है,लूटने वाले लूटने मे ब्यस्त है उनको इससे मतलब नही होता है कि कौन ,कैसा है बस उनको लूटने से मतलब होता है। वे यह भी नही देख पाते है की कौन गरीब है,और उसकी आर्थिक दशा कितनी खराब है। उनको तो बस पैसे से प्यार होता है। सरकारी अस्पतालों की हालत यही है कि सेलरी मिलने के बाद भी लोग बाहर से धन उगाही करते है। अब अगर 50-60 हजार पाने वाले इस तरह से धन उगाही करेंगे तो फिर जो आठ से दस हजार कमाने वाले कहाँ से खर्च करे। लेकिन हमारे समाज की यही बिडम्बना है कि गरीब को गरीब तथा धनी को धनी बनाता जा रहा है। समाज को इंसानियत के बारे मे सोचना चाहिए ,इतना बेदर्द जमाने को नही बनना चाहिए।। ——————————————————————————————————————————————–नीरज कुमार पाठक नोएडा

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