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हम सत्य क्यो नही स्वीकार करते?

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मेरे एक बात समझ मे नही आती है कि लोग कहते है कि आतंक का कोई धर्म नही होता,कोई जाति नही होती,कोई देश नही होता,इनके कोई माता-पिता नही होते ,इनके कोई भाई-बहन नही होते। तो अब सवाल सबसे बड़ा ये है कि ये आतंकी आते कहाँ से। इस सवाल का जबाब सबको आता है,लेकिन फिर भी लोग उत्तर देने मे राजनीति करते है। क्योकि सबको पता है कि आतंकी किसी न किसी धर्म से जरूर आते है,आतंकी किसी पेड़ से नही गिरते। अगर हिन्दू वर्ग का ब्यक्ति आतंकवादी है तो इससे साफ हो जाना चाहिये कि ये आतंकवादी हिन्दू वर्ग से है।उसी प्रकार से मुस्लिम धर्म का कोई ब्यक्ति आतंकवादी बन गया तो वह आतंकवादी मुस्लिम कहलायेगा। इस आतंकवादी की अगर मृत्यु हो जाती है तो उसको हम उसके परिवार को सौंप देते हैं
तो जब हम मुस्लिम परिवार मे लाश देते है तो वह आतंकबादी भी तो मुस्लिम हुआ। इसी प्रकार अगर हिन्दू धर्म से कोई आतंकवादी बन गया तो जब उसकी मृत्यु होगी तो हम उसके परिवार को लाश देते है।तो उस लाश को वो जला देता है,अब जलाने से क्या मतलब हुआ,इसका सीधा मतलब हुआ की ये आतंकबादी हिन्दू है।जितने भी आतंकियों के संगठन है उनके नाम से हम क्या अर्थ लगाये,या उनके किस धर्म से जुड़ने की बात समझे।अगर जब हिन्दू सेना,शिव सेना,दुर्गा वाहिनी (जब कि ये आतंकी संगठन नही है) आदि संगठन से हम अनुमान लगा सकते है कि ये संगठन हिन्दू वर्ग से जुड़ा है।इसी प्रकार से लश्कर,जैश,जमाउत दावा ,अलकायदा (ये आतंकी संगठन है।)आदि संगठनो को हम क्यो नही कहते कि ये मुस्लिम वर्ग के संगठन है। —————————अगर सबके कहने के अनुसार आतंकवादी का कोई धर्म नही होता तो हम उस आतंकी को क्यो दफनाते है। हमारे अन्दर अप्रत्यक्ष रूप से ये बात तो रहती है कि ये मुसलमान है और इसको दफन करना है।सब लोगो की तरह अगर हम मान भी ले कि आतंकी का कोई धर्म नही होता तो उसको हम दफनाते क्यो है, उसको जला देना चाहिये,या फिर उसको समुद्र मे फेकवा देना चाहिये,क्योकि जब उसका धर्म ही नही है तो उसका हम क्या करेगे। कहते है कि आतंकी का कोई धर्म नही होता, उसका कोई नही होता तो फिर एक आतंकी के मरने पर उसके जनाजे मे तमाम चाचा,भतीजे कहाँ से निकल आते है जो हमारे सेना के ऊपर पत्थर बाजी करते है।अब सवाल सबसे बड़ा ये है कि ये आतंकबादी पहले मुसलमान रहते है,(जन्म से लेकर आतंकबादी बनने तक)फिर आतंकबादी बन जाते है (उस समय उनका कोई धर्म नही होता) फिर मरने के बाद मुसलमान बन जाते है,जब तक आतंकबादी रहते है तब तक उसका कोई नही रहता,लेकिन जैसे ही उस आतंकबादी की मृत्यु होती है,उसके जानने वाले तमाम निकल आते है,उस आतंकी को लोग सिर पर बैठा लेते है, उस आतंकी के मौत के मातम के बहाने हिंसा करते है।हमारे सैनिको के ऊपर पत्थर बाजी,पेट्रोल बम से हमला करते है।पहले के समय मे रावण भी एक आतंकी की तरह काम करता था,लेकिन वह ब्राह्मण जाति से था ,तो हम उसको ब्राह्मण ही तो कहते है,हम ये तो नही कहते कि रावण की कोई जाति नही थी। इस प्रकार से हम कह सकते है कि हर जाति,धर्म मे कुछ न कुछ वर्ग के लोग समाज से कट जाते है,लेकिन इनका धर्म नही बदलता है।कोई भी धर्म हो उसमे सब लोग खराब नही होते,लेकिन कुछ युवा वर्ग के लोग अपनी औकात समझ नही पाते और हाफिज सईद जैसे आतंकियों के बहकावे मे आ जाते है और प्रकृति द्वारा प्रदत्त अपनी जिन्दगी को बर्बाद कर देते है।सवाल हमारे सामने ये है कि इन भटकती आत्माओ को बहकने से कैसे रोका जाय। —————————————————————————————————–नीरज कुमार पाठक नोएडा

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