Menu
blogid : 23855 postid : 1205858

यह कैसा लोकतंत्र

Indian
Indian
  • 259 Posts
  • 3 Comments

भारत एक लोकतंत्र देश है लेकिन इस देश मे गरीब रहने का कोई फायदा नही दिखता, क्योकि यहाँ पर जो गरीबी-अमीरी के बीच मे सीमांकन किया गया है वह गरोबो को और गरीब तथा धनी को और धनी बनाता जा रहा है। जो भी ब्यक्ति आमदनी के हिसाब से बड़ा है वह बड़ा ही होता जा रहा है,जो नीचे है वह नीचे ही होता जा रहा है। छोटा ब्यक्ति इतना धन अर्जित नही कर पाता कि वह आगे बढ़ने के बारे मे सोचें। जाहिर सी बात है कि जिस ब्यक्ति की छोटी आय होगी उसकी सोच भी छोटी होगी ,वह ऊपर सिर उठा कर नही देख सकता,क्योकि उसकी गर्दन उतनी लम्बी नही होती है कि वह बहुत ऊँचाई तक देखे। छोटी आय का ब्यक्ति ऊँचे-ऊँचे फ्लैट तक देख नही पाता और वह झोपड़ी तक ही अपनी गर्दन को लम्बा कर पाता है। इस मामले मे सरकार का बहुत बड़ा योगदान है। सरकार खुद नही चाहती कि अनुबंधित आधार पर जो भी श्रमिक है वह अच्छा जीवन जीये,हमारे देश की लोकतंत्रीय ब्यवस्था का क्या आधार है जिसमे एक रिक्शा वाला भी उसी दाम पर आटा खरीदता है और जो देश का सांसद है वो भी उसी रेट पर आटा खरीदता है। यह सोचने वाली बात है कि एक रिक्शा चलाने वाला बीस-बीस रुपये जोड़कर एक दिन मे दो सौ रुपये तैयार करता है और अगर उसको एक किलो दाल लेनी है तो उसकी दिनभर की उसी दाल को खरीदने मे लग जाता है।अब वह रिक्शावाला बाक़ी कोई काम नही कर सकता। अगर गलती से उसका लड़का दस रुपये कॉपी के लिये मांग ले तो उसके लिये मुश्किल हो जाता है,और इस मामले को वह दूसरे दिन पर छोड़ देता है। जब दूसरे दिन जब रिक्शावाला किराया ले के आएगा तब उस लड़के की कॉपी आयेगी। —– — हमारे सिस्टम मे यही सबसे बड़ी कमी है जो दोहरा मापदण्ड अपनाया जाता है। इस देश मे सेलरी के हिसाब से अलग-अलग कटेगरी होनी चाहिये। ये कतई नही होना चाहिये कि दस हजार सेलरी वाला भी उसी महँगाई को झेल रहा है और जिसकी सेलरी दो लाख है वो भी उसी महँगाई के पैमाने से गुजर रहा हो। कहने का मतलब ये है कि अगर छोटा आदमी है तो उसके ऊपर उसी के हिसाब से लोड डाला जाना चाहिये। समाज मे कुछ ऐसे नियम होने चाहिये कि गरीब आदमी भी गर्व से जीवन जी सके ,उसको ये नही लगना चाहिये कि मैं कहा पैदा हो गया,मतलब उसको आत्मग्लानि नही होनी चाहिये। क्योकि हर मनुष्य को बराबर जीने का अधिकार है,प्रकृति ने कभी नही कहा है कि जो गरीब है वे घुट-घुट कर जीवन-यापन करे। लेकिन दुख इस बात का है प्रकृति भले ही न चाहे लेकिन मानवीय तंत्र के वजह से गरीब तबके के लोग उबर नही पा रहे है। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक आइसीएआइ भवन सी-1 सेक्टर-1 नोयडा 201301 ——————————————————————–

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh