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कलयुग के प्रथम चरण मे ही समाज की इतनी भयावह तस्वीर देखने को मिल रही है तो फिर चतुर्थ चरण का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना करना ही बड़ा मुश्किल लगता है।क्योकि इस समाज के अंदर रिश्तों का निर्वहन करना लोग भूलते जा रहे है और अपने ही अपनो के खून के प्यासे होते जा रहे है। इस समय पिता पुत्र को पुत्र पिता को पति पत्नी को पत्नी पति को देवर भाभी को भाभी देवर को । इसी प्रकार से जितने भी रिश्ते इस मानव युग मे है सब तार-तार होते जा रहे है,कोई भी रिश्ता ऐसा नही दिखाई देता जिसमे हम कह सके कि ये कलंकित नही हुआ है। ये भी नही है कि बहुत बड़ी-बड़ी बातों के वजह से मर्डर किये जा रहे हो,बहुत छोटी-छोटी बातों पर भी रिश्ते की परवाह किये बगैर घटना को अंजाम दिया जाता है। जमाना कितना बदल गया है कि अगर पिता ने अपने ही लड़के को एक तमाचा मार दिया तो वह पिता के खून का प्यासा हो जा रहा है। इन सब रिश्तों के अंदर जो दरारे आ रही है उनके अनगिनत कारण बनते है जिसमे से कुछ कारणों को हम समझने की कोशिश कर रहे है।इसमे पहला कारण ये है कि सबके अंदर सहनशीलता का अभाव होता जा रहा है,किसी के पास किसी की बात बर्दाश्त करने की क्षमता नही रह गयी है,गुस्से पर बिल्कुल कण्ट्रोल नही रह गया है अगर गलती पर बड़ा भाई ही छोटे को मार दिया तो छोटा अपने को छोटा मानने के लिए कतई तैयार नही होता। इसलिए भी मर्डर की घटनाओं मे इजाफा हो रहा है।। दूसरा सबसे बड़ा कारण है–प्रेम प्रसंग। रिश्तों मे सन्नाटा लाने मे इसकी भी अहम भूमिका है।प्रेम को कहा जाता है कि ये अन्धा होता है ,इसको रिश्ता पहचान मे नही आते,और इस प्रेम के मायाजाल मे फ़स कर आदमी या औरत दोनो को रिश्ता नजर नही आता और ये प्रेमांध लोग फिर शुरू करते है मर्डर का सिलसिला,फिर इन हत्याओं के कारण परिवारो के बीच मे आता है सन्नाटा। अगर इन सन्नाटो को कोई खत्म करता है तो वो होता है परिवार का करुण रुदन।। तीसरा सबसे बड़ा कारण है ज़मीन-जायदाद का लेंन-देन। ये भी पारिवारिक हत्याओं के लिये कम जिम्मेदार नही है,क्योकि पहले के समय मे और आज के समय मे बहुत अंतर हो गया है।पहले किसी से आप दो ,चार बिस्वा जमीन मांग लो तो वो वैसे ही दे देते थे लेकिन आज की परिस्थिति बिल्कुल भिन्न हो गयी,आज के समय मे लोग अपने सगे भाई को भी एक बिस्वा जमीन नही देते है।इस जमीन के लिये भाई,भाई का मर्डर कर दे रहे है। इस प्रकार से कुछ अन्य कारण से भी पारिवारिक हत्याएं हो रही है, जो अपनेपन का भी ख्याल नही रखते और अपनो के बीच ही सन्नाटा करते रहते है।सन्नाटा इसलिये कि अपने का खोने का गम तो हो ही जाता है। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक नोयडा ———————————————————————-
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